मिश्रीवाला में सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल किया

साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज मिश्रीवाला में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि हजारों जगहों पर कबीर साहिब एक बात की पुष्टि कर रहे हैं कि जैसे तिलों में तेल है, चकमक पत्थर में आग है, ऐसे ही आत्मा में परमात्मा का वास है। बीज के अन्दर पेड़ है। पर उसे एक माध्यम से प्रगट करना होगा। पेड़ के मध्य छाया है। ऐसे ही धर्म शास्त्रों ने परमात्मा की स्थिति आत्मा के अन्दर कही है। आत्मा में माया आ गयी। काया और माया एक ही हो गये। जैसे स्वांसा से आत्मा शरीर में आई, इसे माया लग गयी। जैसे जल में चीनी मिला दी तो दिखती नहीं है। पर अनुभव होती है। दूध में सब जगह घी है। बिना युक्ति के प्राप्त नहीं हो सकता है। इस तरह सद्गुरु चाहिए समझाने वाला। सूर्य में क्या है, सूर्य की किरणों में वही चीज है। आप अनुभव कर सकते हैं। सूर्य पूरी पृथ्वी का आधार है। आप देखें कि आजकल सौर उर्जा के द्वारा सब कार्य करने का प्रयास कर रहे हैं। स्पेन में सौर उर्जा से गाड़ियाँ चलती हैं। इस तरह आत्मा आपसे अलग नहीं है। परमात्मा आपसे दूर नहीं है। जैसे सूर्य की किरणें उससे अलग नहीं हैं। इस तरह परमात्मा आपमें है। आप सुबह अपने घर के भीतर आने वाली सूर्य की किरणों से सूर्य की उर्जा को समझ सकते हैं। बाहर अगर किसी घर में सूर्य की किरणें नहीं आतीं तो घर नहीं बना सकते हैं। सूर्य की उर्जा नहीं मिले तो पेड़ भी सूख जायेंगे। पेड़ों में जीवन है। सूर्य से एक अद्भुत उर्जा मिलती है। वो आपकी सेहत के लिए भी जरूरी है। आपके घर के लिए भी जरूरी है। साहिब जी ने कहा कि आप एकाग्र क्यों नहीं हो पा रहे हैं। क्योंकि मन आपके ध्यान को भंग करने वाला है। मन चाहता है कि आप एकाग्र नहीं हो पाएँ। आप हताश हो जाते हैं और कहते हैं कि छोड़ो। एकाग्र न होने का कारण आपका मन है। अगर इस शरीर में आत्मा है तो उसका क्या स्वरूप है। वो है चेतना। सभी ध्यान एकाग्र करना चाहते हैं। इसी ध्यान को साहिब ने सुरति बोला। ध्यान को चार चीजें भंग करती हैं। पहला संकल्प और इच्छाएँ। दूसरा बुद्धि आपके ध्यान को विचलित करती है। वो फैसला करती है। वो शरीर से संबंधित चीजों का फैसला करती है। इससे परे उसकी ताकत नहीं है। तीसरा चित्त है। जब आप सुमिरन कर रहे हैं, चित्त एकाएक पुरानी बातें याद दिलाता है। आप उलझ जाते हैं। बरबस याद दिला देता है। एकाएक चित्त की तरंग आईं। हम उसी के बारे में सोचने लगे, जिसमें चित्त ने भुला दिया। हमारी एकाग्रता भंग हो गयी। अगर इनको रोक लिया तो अंत में मन है। वो बोलेगा कि बहुत हुआ, छोड़े, अब कल करेंगे। ये सब मन का रूप है। आपसे बन ही नहीं पायेगा। जब गुरु बतायेगा, तब होगा। पूरी स्वांसा तब एकाग्र होने पर सिमटेगी। फिर आत्म रूप नजर आयेगा। वहाँ मन समझ आयेगा। मन को मारकर आगे चलना है। स्वांसा में सुमिरन से यह चीज होगी। वहाँ मन बंध जायेगा। आपको केवल सुमिरन करना है। गुरु वहाँ मन को रोकने के लिए आधार दे देगा। नहीं तो अपनी ताकत से नहीं हो पायेगा। चित्त भी वहाँ रुक जायेगा। मन के संकल्प भी रुक जायेंगे। फिर जो बचा, वो आत्मरूप है। आपको केवल नाम का सुमिरन करना है। कोई कठिन काम नहीं है। केवल नाम करते रहो। आपको अन्दर से मदद भी मिलती रहेगी। सद्गुरु आपकी मदद करेगा। बस आपकी तरफ से एकाग्रता चाहिए। फिर आगे साहिब है।

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