उधमपुर लोकसभा सीट पर कम होती जा रही प्रतिद्वंद्विता

19९६ में थे सांसदी के 40 दावेदार, जो अब घटकर रह गए केवल 12 

जम्मू। (एसकेके) : चुनाव लडऩे का क्रेज लगातार कम होता जा रहा है और निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या निरंतर घट रही है। जी हां हम बात कर रहे हैं जम्मू और कश्मीर की उधमपुर लोकसभा निर्वाचन सीट की जिसके लिए वर्ष १९९६ में ४० उम्मीदवार सांसद बनने के लिए मैदान में थे लेकिन इस बार के चुनाव में केवल १२ उम्मीदवार ही सांसदी का दावा पेश कर रहे हैं।  क्षेत्र में संसदीय प्रतिनिधित्व के लिए उम्मीदवारों की संख्या और विविधता में एक आकर्षक विकास देखा गया। अपने पहले चुनाव में मामूली तीन दावेदारों से लेकर 1996 में चौंका देने वाले 40 उम्मीदवारों तक, उधमपुर के चुनावी परिदृश्य ने क्षेत्र के गतिशील राजनीतिक उत्साह को प्रतिबिंबित किया है। 1967 में अपनी स्थापना के बाद से, निर्वाचन क्षेत्र ने एक उल्लेखनीय प्रगति पथ तय किया है। 1967 के अपने उद्घाटन चुनाव में उधमपुर में केवल तीन उम्मीदवारों के बीच ही मामूली प्रतिस्पर्धा देखी गई। दावेदारों में कांग्रेस, भारतीय जनसंघ और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रतिनिधि शामिल थे। कांग्रेस उम्मीदवार जीएम ब्रिगेडियर विजयी हुए। इसके बाद 1971 में बढ़ते राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाते हुए उम्मीदवारों की संख्या दोगुनी होकर आठ हो गई। कांग्रेस और भारतीय जनसंघ के अलावा शिरोमणि अकाली दल भी मैदान में उतरा। वर्ष 1989 में चुनावी क्षेत्र का और विस्तार हुआ, जिसमें 24 उम्मीदवार उधमपुर से चुनाव लड़े जिनमें  निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ गई। कांग्रेस, जनता दल, भाजपा, पैंथर्स पार्टी और प्रोटिस्ट ब्लॉक ऑफ इंडिया ने भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। वर्ष 1996 में उधमपुर सीट के लिए रिकॉर्ड प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे जिसमें 40 उम्मीदवार जीत के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। भाजपा, कांग्रेस, जनता दल, बसपा और पैंथर्स पार्टी जैसी प्रमुख पार्टियों ने 34 स्वतंत्र उम्मीदवारों के साथ चुनाव लड़ा। कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच भाजपा उम्मीदवार चमन लाल गुप्ता विजयी हुए। इसके बाद चुनाव लडऩे वालों में होड़ कम होती गई और वर्ष 2004 में सांसदी के लिए केवल 20 उम्मीदवार ही मैदान में उतरने। इस बार यह संख्या और कम हो गई। वर्ष 2024 के चुनाव में उधमपुर सीट पर केवल 12 उम्मीदवार संसदीय प्रतिनिधित्व के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जो उम्मीदवारों की संख्या में गिरावट को साफ दर्शा रहा है। कांग्रेस, भाजपा और एनसी जैसे प्रमुख दल स्वतंत्र उम्मीदवारों के साथ-साथ अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार रहे हैं। उम्मीदवारों की संख्या में कमी आई है, लेकिन चुनाव उसी जोर शोर से लड़े जा रहे हैं।  

   

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