मुरिया जनजाति में बुजुर्गों से युवाओं ने सीखा आभूषण निर्माण

मुरिया जनजाति का आभूषण है तला कासरंगमुरिया जनजाति का आभूषण है तला कासरंगमुरिया जनजाति का आभूषण है तला कासरंग

- तला कासरंग के संरक्षण एवं संवर्धन पर कार्यशाला आयोजित

रायपुर/नारायणपुर, 28 सितंबर (हि. स.)। छत्तीसगढ़ के बस्तर में निवासरत मुरिया जनजाति अपनी गोटुल परंपरा के लिए देशभर में विख्यात है। गोटुल केवल सामाजिक संस्था ही नहीं, बल्कि यह युवा पीढ़ी को संस्कार, अनुशासन, कला और परंपराओं से जोड़ने का माध्यम भी है। इसी गोटुल परंपरा से जुड़ा एक विशेष आभूषण “तला कासरंग” है, जिसके प्रति मुरिया समाज में अद्भुत आकर्षण रहा है।

समय के साथ बदलाव और नई पीढ़ी की बदलती जीवनशैली ने इस आभूषण की पारंपरिक निर्माण तकनीक को संकट में डाल दिया है। युवा वर्ग अब इसके निर्माण की विधियों से धीरे-धीरे अनभिज्ञ होता जा रहा है।

इसी संदर्भ में सुरुज ट्रस्ट के तत्वावधान में 21 सितंबर से 27 सितंबर 2025 तक केजंग गोटुल में सात दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

सुरुज ट्रस्ट की संस्थापक दीप्ति ओग्रे का कहना है, इस कार्यशाला का उद्देश्य मुरिया जनजाति के युवाओं को तला कासरंग बनाने की पारंपरिक तकनीक से पुनः जोड़ना और इस अद्वितीय धरोहर को संरक्षित रखना है। ऐसी पहल न केवल पारंपरिक ज्ञान को सुरक्षित रखेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का काम भी करेगी।

कार्यशाला में गोटूल के बुजुर्गों सदस्यों द्वारा युवा गोटूल के 10 महिला सदस्यों युवा लया - लयोर को इस आभूषण के निर्माण की बारीकियों से परिचित कराया। साथ ही इसके सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व पर भी चर्चा की गई।

कार्यशाला को सफल बनानें में बस्तर ट्राइबल होमस्टे के संस्थापक शकील रिज़वी, हैलो बस्तर के संचालक अनिल लुकंड, हॉलिडेज़ इन रूरल इंडिया की संस्थापक सोफी हार्टमेन और दिल्ली की चिन्हारी संस्थान का विशेष सहयोग रहा।

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हिन्दुस्थान समाचार / गायत्री प्रसाद धीवर

   

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