झज्जर : चार साल पहले मिला मॉडल स्कूल का दर्जा लेकिन ड्यूल डेस्क तक हैं नहीं
- Admin Admin
- Dec 05, 2024
झज्जर, 5 दिसंबर (हि.स.)। बहादुरगढ़ के सेक्टर 6 स्थित राजकीय माडल संस्कृति प्राइमरी स्कूल कहने को तो मॉडल स्कूल है। लेकिन विद्यार्थियों को बैठने के लिए ड्यूल डेस्क तक नहीं मिलते। वे फर्श पर बिछी टांट पट्टीयों पर बैठने के लिए मजबूर हैं।
राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल सेक्टर 6 बहादुरगढ़ में बच्चों की संख्या तो 422 है, मगर डेस्क मात्र 30 हैं। ऐसे में अधिकतर बच्चे जमीन पर टाट पट्टी पर बैठने को मजबूर हैं। कुछ बच्चों को तो यह भी नसीब नहीं हो रही है। यहां पर 211 ड्यूल डेस्क की मांग कई सालों से चली आ रही है लेकिन सरकार ने वर्ष 2020 में इस राजकीय प्राथमिक स्कूल को माडल संस्कृति का दर्जा को दिया, लेकिन बच्चों के लिए डेस्क मुहैया नहीं कराए। ऐसे में बच्चे भी मजबूरी में अपनी पढ़ाई जमीन पर बैठकर कर रहे हैं। अब सर्दी का मौसम है तो बच्चों को ठंड में जमीन पर बैठकर ही पढ़ाई करने को मजबूर होना पड़ेगा।
विद्यालय में कुल 12 कमरे हैं। एक कमरा काफी छोटा है तो उसमें स्कूल का सामान रखा है। एक में कार्यालय बनाया गया है। कुल 10 कमरों में बच्चों की पढ़ाई होती है। मॉडल संस्कृति स्कूल है तो हर कमरे में डिजिटल बोर्ड होना चाहिए लेकिन अब तक मात्र दो कमरों में ही डिजिटल बोर्ड हैं। यहां पर शिक्षा विभाग की बजाय भूमि एनजीओ की ओर से तीन कमरों को माडल बनाने का काम किया जा रहा है। स्कूल में इस समय 422 बच्चों को पढ़ाने के लिए 11 टीचर हैं। हेड टीचर की पोस्ट खाली है। इसके साथ ही दो अन्य टीचर के पद भी यहां खाली हैं। इस कारण 11 टीचर ही 422 बच्चों को पढ़ा रहे हैं। हेड टीचर व दाे अन्य टीचर की मांग किए काफी समय हो चुका है लेकिन इन पदों को भरने के लिए अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मॉडल संस्कृति स्कूल में बंदरों की भी काफी समस्या है। स्कूल आवर्स के दौरान बंदरों का झुंड स्कूल में घुस जाता है। पानी की टंकी व अन्य सामान को नुकसान पहुंचाता है। कक्षा रूम में भी बंदर घुस जाते हैं, जिससे पढ़ाई के दौरान अफरा तफरी मच जाती है। बाद में टीचर व चपरासी की ओर से बंदरों को स्कूल से भगाने का काम किया जाता है। यह तकरीबन हर रोज की कहानी हो गई है। विद्यालय की प्रभारी अध्यापिका उर्मिला ने बताया कि स्कूल में 422 बच्चे हैं। डेस्क मात्र 30 हैं। यहां पर करीब 211 डेस्क की मांग है। यह मांग किए कई साल हो गए हैं लेकिन अब तक बच्चों के लिए डेस्क नहीं मिल सके हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / शील भारद्वाज