विजय दिवस पर कोलकाता में नहीं आएंगे मुक्तियोद्धा, परंपरा टूटने के आसार

कोलकाता, 06 दिसंबर (हि.स.)। इस साल कोलकाता में भारतीय सेना द्वारा आयोजित विजय दिवस समारोह में बांग्लादेश के मुक्तियाेद्धा और वहां के सैन्य अधिकारी शामिल नहीं होंगे। जबकि बांग्लादेश के मुक्तियाेद्धा और वहां के सैन्य अधिकारी शामिल हाेने की परंपरा 1971 के भारत-पाक युद्ध में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही है।

भारतीय सेना के पूर्वी कमान की ओर से हर साल विजय दिवस पर 3-4 दिन तक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इसमें मुक्तियाेद्धा, उनके परिवार, बांग्लादेशी सांसद और सैन्य अधिकारी भाग लेते थे। यह परंपरा बांग्लादेश की सत्ता में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के दौरान भी जारी रही।

इस बार पूर्वी कमान द्वारा जारी कार्यक्रम सूची में बांग्लादेशी प्रतिनिधिमंडल के दौरे का जिक्र नहीं है। जब पत्रकारों ने इस पर सवाल किया तो मेजर जनरल मोहित सेठ, जनरल स्टाफ (एमजीजीएस), ने कहा, हम आपको जानकारी देंगे।

मेजर जनरल सेठ ने बताया कि 1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने मुक्ति वाहिनी को अपने अभियानों में शामिल किया। उन्होंने कहा, युद्ध से पहले पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत बंगाली राष्ट्रवादियों पर अत्याचार किए। इसमें हजारों लोग मारे गए और लाखों को पलायन करना पड़ा। इनमें से कई शरणार्थी पश्चिम बंगाल पहुंचे।उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय सेना ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान को पश्चिम पाकिस्तान की जेल से रिहा कराया था।

राजनीतिक अस्थिरता बनी वजह-राजनीतिक और सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि बांग्लादेश में हाल की हिंसा और अस्थिरता के चलते मुक्तियोद्धा सार्वजनिक रूप से सामने आने से बच रहे हैं। इस साल पांच अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद छोड़ने के बाद देश छोड़कर जाना पड़ा था।

अगर मुक्तियोद्धा कोलकाता में विजय दिवस कार्यक्रम में शामिल होते हैं, तो उनकी पहचान उजागर हो सकती है। इससे उनके खिलाफ हिंसा का खतरा बढ़ जाएगा। इस कारण मुक्तियोद्धाओं की भागीदारी परंपरा इस बार टूट सकती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

   

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