धर्मपुर के आचार्य रामजी ठाकुर : संस्कृत के शिखर पुरुष, बिहार के गौरव
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- Oct 09, 2025
दरभंगा, 9 अक्टूबर (हि.स.)।
मिथिला की धरती को गौरवान्वित करने वाले आचार्य रामजी ठाकुर आज भी ज्ञान और साहित्य की साधना में रत हैं। लगभग 92 वर्ष की आयु में भी उनका साहित्यिक योगदान समाज के लिए प्रेरणा बना हुआ है।
दरभंगा जिले के उजान पंचायत के धर्मपुर निवासी आचार्य ठाकुर को भारतीय संस्कृत साहित्य में उनके अप्रतिम योगदान के लिए देश-विदेश में सम्मानित किया जा चुका है।
वे पहले बिहारी विद्वान हैं जिन्हें मूल संस्कृत में रचना के लिए “साहित्य अकादमी पुरस्कार” प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त उन्हें राष्ट्रपति सम्मान (2018) भी उनकी प्रसिद्ध ‘प्रबंध त्रयी’ रचनाओं के लिए प्रदान किया गया था। उनकी विद्वत्ता और रचनात्मकता का दायरा अत्यंत व्यापक रहा है। ‘वैदेहीपद्यम्’, ‘रामचरितम्’, ‘प्रेरस्यम्’, ‘बाणेशचरितम्’, ‘गीतामाधुरी’, ‘लघुपद्यकाव्यसंग्रहः’, ‘कालकाव्यकोशः’, ‘शक्तिविलासमहाकाव्यम्’ जैसी अनेक संस्कृत कृतियाँ उनके गहन अध्ययन और साधना की परिणति हैं।
उनकी कृतियाँ न केवल संस्कृत साहित्य की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाती हैं, बल्कि मैथिली और भारतीय संस्कृति की जड़ों से भी गहराई से जुड़ी हैं।
आचार्य ठाकुर को अब तक “साहित्यिकी सम्मान”, “किरण मैथिली सम्मान”, “चेतना समिति सम्मान” सहित दर्जनों राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
चार पुत्रियों के पिता आचार्य ठाकुर का जीवन सादगी, अध्यवसाय और संस्कृत साधना का आदर्श उदाहरण है। मिथिला की सांस्कृतिक पहचान और शास्त्रीय परंपरा को जीवित रखने में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
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हिन्दुस्थान समाचार / Krishna Mohan Mishra



