वाराणसी: बीएचयू में भारतीय प्रवासियों की भूमिका पर अंतर्राष्ट्रीय मंथन

वक्ता बोले—वैश्विक स्तर पर फैला भारतीय प्रवासी समाज आज देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि और सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ बना रहा

वाराणसी,09 दिसम्बर (हि.स.)। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के इतिहास विभाग में मंगलवार को भारतीय प्रवासी समुदाय से जुड़ाव: भारत की 21वीं सदी की प्रगति में प्रवासी भारतीयों की भूमिका विषयक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन हुआ।

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ गुजरात के सेंटर फॉर डायस्पोरा स्टडीज के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में पहले दिन अनुसंधान, संस्कृति, कूटनीति तथा वैश्विक सहभागिता के बहुआयामी स्वरूप पर चर्चा हुई। चर्चा के केन्द्र में वैश्विक स्तर पर फैला भारतीय प्रवासी समाज आज भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि और सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ करने में निर्णायक भूमिका रही। उद्घाटन सत्र के तहत प्रो. एम.के. गौतम मेमोरियल लेक्चर में प्रो. गौतम के सांस्कृतिक अनुसंधान और प्रवासी भारतीय इतिहास लेखन में किए गए उल्लेखनीय योगदान को स्मरण किया गया। वक्ताओं ने उनके कार्य को समकालीन प्रवासी अध्ययन के लिए मार्गदर्शक बताया। प्लेनरी सत्र–एक में भारत–कैरेबियन प्रवासन के इतिहास, भारत–कैरेबियन संबंधों तथा कैरेबियन क्षेत्र में भारतीय मूल के लोगों की सांस्कृतिक निरंतरता पर केंद्रित प्रस्तुतियां दी गईं। विशेषज्ञों ने कहा कि भारतीय परंपराएं, भाषा, भोजन और सांस्कृतिक अनुष्ठान आज भी कैरेबियन समाजों में जीवंत रूप से संरक्षित हैं। प्लेनरी सत्र–दो में चर्चा का केंद्र सांस्कृतिक कूटनीति, वैश्विक भारतीय पहचान तथा खाड़ी देशों में श्रम सुधारों की वर्तमान स्थिति रहा। संगोष्ठी के दूसरे दिन भारत और विदेश के विद्वानों ने एक साथ आकर औपनिवेशिक गिरमिटिया प्रणाली से लेकर डिजिटल कूटनीति और दूसरी पीढ़ी की पहचान पर बहस जैसे विषयों पर चर्चा की। सुबह के सत्रों में, शोधकर्ताओं ने सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक कूटनीति पर प्रस्तुतियां दीं, जिसमें चर्चा की गई कि प्रवासी समुदाय कला, साहित्य, विरासत और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से भारत के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में कैसे काम करते हैं।

प्रवासन के ऐतिहासिक प्रक्षेपवक्र पर एक अन्य सत्र में अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और कैरिबियन में गिरमिटिया मजदूरों, व्यापारी नेटवर्क, दलित प्रवासियों और दो बार पलायन करने वाले परिवारों की यात्राओं का पता लगाया गया। दिन का मुख्य आकर्षण प्रो. नरेश कुमार की अध्यक्षता में आयोजित सत्र रहा , जहां वक्ताओं ने म्यांमार, खाड़ी और अमेरिका में भारत की प्रवासी उपस्थिति का विश्लेषण किया गया।

म्यांमार में भारतीय समुदाय पर प्रो. अंबा पांडे के व्याख्यान और खाड़ी प्रवासन पर प्रो. अनीसुर रहमान की समीक्षा ने ऐतिहासिक रुझानों और राजनीतिक बदलावों में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की। बाद के सत्रों में सूरीनाम और त्रिनिदाद के विद्वानों ने गिरमिटिया इतिहास पर फिर से विचार किया, जिसमें महिलाओं के अनुभवों, शिक्षा और पैतृक वंश की खोज पर ध्यान केंद्रित किया गया। एक अन्य सत्र में भारत में जिला विकास में गुजराती प्रवासियों के योगदान पर प्रकाश डाला गया, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और कैरिबियन के वक्ताओं ने प्रवासी समूहों के बीच राजनीतिक भागीदारी और सांस्कृतिक लचीलेपन पर चर्चा की।

दोपहर में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम हुआ जिसमें डॉ. चान ई.एस. चोएन्नी, डॉ. दीप्ति अग्रवाल और डॉ. स्वीकृति की नई कृतियों का विमोचन किया गया। वहीं, शाम को आयोजित दो आभासी सत्रों में म्यांमार, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, गुयाना, इंडोनेशिया, त्रिनिदाद, सूरीनाम और नीदरलैंड से भागीदारी हुई। सम्मेलन में प्रो. केशव मिश्रा, प्रो. ध्रुव कुमार सिंह, प्रो. ताबिर कलाम, प्रो. मालविका रंजन, डॉ. अर्पिता मित्रा (मॉडरेटर), डाॅ. सत्यपाल यादव, अशोक कुमार सोनकर तथा अतुल कुमार आदि की भागीदारी रही।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी