-64 गांवों के 17 हजार परिवारों को स्वरोजगार से जोड़ रहा दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट
हरिद्वार, 9 दिसंबर (हि.स.)। पतंजलि के दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और उत्तराखंड जनजातीय निदेशालय की ओर से उत्तराखंड के आदिवासियों को पलायन से रोकने और स्वरोजगार से जोड़ने को लेकर अप्रैल 2025 में साइन हुये एएमओयू के कार्यों ने गति पकड़ ली है। प्रदेश के 64 गांवों में रहने वाले 17 हजार आदिवासियों को उनके उत्पाद के लिए बाजार उपलब्ध कराने का काम भी दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की ओर से किया जा रहा है।
पतंजलि के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने एक विज्ञप्ति में बताया कि पतंजलि के दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और उत्तराखंड सरकार के बीच अप्रैल 2025 में आदिवासी समाज को मुख्य धारा से जोड़ने को लेकर एक एएमओयू पर हस्ताक्षर किया गया। इस प्रोजेक्ट का नाम ट्राइबल आदि ग्राम रखा गया है। इसी प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड में 17 हजार आदिवासी परिवार का एक-एक ब्यौरा और पूरा प्रोफाइल तैयार किया जा रहा है।
उन्हाेंने बताया कि इसी के तहत दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के 50 से अधिक लोगों ने जमीनी स्तर पर उतरकर आदिवासी समूह के एक-एक परिवार का डेटा बेस पूरे प्रदेश में तैयार किया जा रहा है। इसके तहत 17 हजार आदिवासी परिवारों की पहचान की और डेटा बेस की मॉनिटरिंग की। प्रत्येक गांव में ट्रस्ट के सहयोगियों को आदिवासी परिवार को मुख्य धारा से जोड़ने में करीब सप्ताह भर का समय लगा।
उन्हाेंने कहा कि आदिवासी परिवारों को विभिन्न प्रशिक्षणों के बाद पता चला कि वे स्वरोजगार कैसे कर सकते हैं और अपना उत्पाद बनाकर उसे बाजार में कैसे बेच सकते हैं? आदिवासी परिवारों को आर्गेनिक खेती, नेचुरल फार्मिंग, मृदा परीक्षण सहित कई तरह की जानकारी और प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा जाएगा और इसमें डिजिटल साल्यूशन जो कि पतंजलि की सिस्टर आर्गेनाइजेशन भरुवा सॉल्यूशन है, जो हरित क्रांति एप कृषि से संबंधित सभी जानकारियां प्रदान करता है को शामिल किया गया है। अन्नदाता एप जिसमें किसान और व्यापारी बिना किसी बिचौलिये के खरीद-बेच कर सकते हैं। आदिवासी बुनकरों के लिए इरुला एप बनाई गई है। जो इनकी आय वृद्धि में सहायक होगी। इसके अलावा सेवा सर्विस एप आदिवासी कारगर जैसे पलम्बर, इलेक्ट्रशियन, नाई आदि को आनलाइन कार्य दिलाने में सहायक होगी। इस कार्यक्रम में आदिवासी परिवारों से सीधे दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट कनेक्ट होकर काम कर रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला



