काशी तमिल संगमम: शैक्षणिक सत्र में शामिल हुए तमिल किसान,भारत कला भवन भी देखा
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- Dec 09, 2025


—जलवायु परिवर्तन सहित व्यापक बदलावों के कारण कृषि के लक्ष्य अब पूरी तरह बदले : प्रो.पंजाब सिंह
वाराणसी,09 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में चल रहे काशी तमिल संगमम के चौथे संस्करण में मंगलवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय(बीएचयू) के पं. ओंकारनाथ ठाकुर ऑडिटोरियम में आयोजित शैक्षणिक सत्र में तमिल किसान भी शामिल हुए। “सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स” थीम पर आधारित सत्र में प्रौद्योगिकी और नवाचार, विकसित भारत 2047 की परिकल्पना के अनुरूप, कृषि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका पर विमर्श किया गया।
विशेषज्ञों ने खाद्य सुरक्षा, सतत कृषि, तथा कृषि क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता जैसे विषयों पर अपने विचार साझा किए। सत्र में बतौर मुख्य वक्ता डॉ. यू. एस. गौतम, पूर्व उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) ने कोयंबटूर और पांडिचेरी की अपनी यात्राओं का उल्लेख किया, जहाँ उन्होंने उद्यमियों से मिलकर कृषि क्षेत्र में उनके नवाचारों की सराहना की। उन्होंने कहा कि 2047 तक किसान उद्यमी बन जाएंगे। डॉ. गौतम ने बताया कि भारत ने पिछले कई वर्षों में कृषि उत्पादन में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है और कृषि नवाचार में भी तेजी से प्रगति की है, लेकिन इन नवाचारों को किसानों तक पहुँचाने में अब भी कमी बनी हुई है-जिस पर आईसीएआर कार्य कर रहा है।
डॉ. गौतम ने बताया कि आईसीएआर ने किसान सारथी ऐप लॉन्च किया है, जिसके माध्यम से अब तक 3 करोड़ किसान सशक्त हुए हैं, और उनका लक्ष्य देशभर के 8 करोड़ किसानों को सशक्त बनाना है। सत्र में रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के कुलाधिपति तथा बीएचयू के पूर्व कुलपति, प्रो. पंजाब सिंह ने कहा कि 1950 के दशक में भारत अपनी खाद्यान्न आवश्यकताओं के लिए अन्य देशों पर निर्भर था, जबकि आज यह न केवल खुद को बल्कि अन्य देशों को भी भोजन उपलब्ध कराता है। उन्होंने कहा कि आज की कृषि, 50 साल पहले की कृषि से बिल्कुल अलग है, और आने वाले वर्षों के कृषि परिवर्तन का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। प्रो. सिंह ने बताया कि जलवायु परिवर्तन सहित व्यापक बदलावों के कारण कृषि के लक्ष्य अब पूरी तरह बदल चुके हैं, और अब ध्यान संसाधन-कुशल कृषि पर होना चाहिए, जिसमें भारत अब भी काफी पीछे है। उन्होंने प्रिसिजन एग्रीकल्चर और स्मार्ट एग्रीकल्चर का उल्लेख किया और कहा कि आज कृषि को समग्र रूप में देखने की आवश्यकता है-जिसमें पोल्ट्री, मत्स्य पालन, पशुपालन आदि भी शामिल हैं। प्रश्नोत्तर सत्र में तमिल प्रतिनिधियों ने कृषि और खाद्य प्रणालियों से जुड़े विभिन्न प्रश्न पैनल विशेषज्ञों से पूछे। सत्र का संचालन कृषि विज्ञान संस्थान के माइकोलॉजी और पादप रोग विज्ञान विभाग के डॉ. विनोद कुमार एस. ने किया। उन्होंने ही धन्यवाद ज्ञापन भी दिया। डॉ. श्रीनिवास डी. जे. ने अतिथियों का सम्मान सत्र का समन्वयन किया।
—तमिल दल ने बीएचयू कला भवन का किया अवलोकन
तमिलनाडु से आए प्रतिनिधिमंडल ने बीएचयू स्थित भारत कला भवन का अवलोकन किया। भारत कला भवन में उन्होंने गुप्तकाल और सिंधु घाटी सभ्यता की टेराकोटा कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ देखीं। पेंटिंग गैलरी में मुगल शैली की पेंटिंग्स, न्यूमिज़मैटिक गैलरी में गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्रा और महामना मालवीय के भारत रत्न को देखा। स्कल्प्चर गैलरी में उन्होंने नटराज की प्रतिमा सहित विभिन्न मूर्तियों का अवलोकन किया। इसके बाद दल ने बीएचयू के कृषि अनुसंधान फार्म में भ्रमण किया। किसानों ने कृषि अनुसंधान फार्म में गतिविधियों में भाग लिया, जिसमें कुदाल से जुताई तथा गेहूँ के बीज बोना शामिल था। इस दौरान कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. यू. पी. सिंह ने किसानों को बताया कि कृषि क्षेत्र आज चार प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा हैंं इसमें कमजोर मृदा स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, उत्पादन अस्थिरता, और रासायनिक उर्वरकों पर बढ़ती निर्भरता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी



