71 वर्षो से होती है मां दुर्गा की पूजा अर्चना

किशनगंज,09अक्टूबर(हि.स.)। नगर परिषद क्षेत्र स्तिथ डुमरिया वार्ड संख्या 30 में दुर्गा मंदिर का इतिहास 71 वर्ष पुराना है। स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां वर्ष 1953 से मंदिर में मां दुर्गा की पूजा अर्चना शुरू की गई थी।

बुधवार को अमरनाथ सिन्हा उर्फ गणेश ने बताया कि डुमरिया के रहने वाले स्व विभूति भूषण सिन्हा पूजा के पहले अध्यक्ष बने थे। इसके बाद स्व० हिरेन्द्र नाथ सिंह, अभिमन्यु पाल, चन्द्र नाथ राय, डा. गनिन्द्र नाथ राय, रमणी मोहन दास, गादल बर्मन और बाद में स्व दिनेन्द्र नाथ सिंह पूजा में सहयोग करते थे। बाद में माता के अन्य स्वरूपों की पूजा होने लगी।

इस बार उत्तराखंड के रेणुकूट की कलाकृति पंडाल में देखने को मिलेगी। कमिटी के सचिव बबन कुमार ने बताया कि धीरे-धीरे दुर्गा मंदिर में लोगों के सहयोग से पूजा होने लगी। बाद में यहां के समाज के लोगों के सहयोग से पक्के का मंदिर का निर्माण हुआ। इसके बाद पक्के के मंदिर में पूजा होने लगी।

अध्यक्ष उत्तम सिंह व सचिव बबन कुमार ने बताया कि सबसे पहले गर्ल्स हाई स्कूल परिसर में पूजा शुरू हुई थी। सचिव ने कहा कि यहां एक ही पुरोहित के वंशज के द्वारा मां दुर्गा की पूजा की जा रही है। पहले स्व० पह्लाद मुखर्जी के द्वारा मां दुर्गा की पूजा की जाती थी। पहले निताई पाल प्रतिमा बनाते थे। गौर करे कि यहां मंदिर में नवमी के दिन महिलाओं के द्वारा खोईचा भरने का रिवाज वर्षों से चला आ रहा है।

स्थानीय लोग कहते हैं इस रिवाज को यहां के लोगों के पूर्वज करते आ रहे हैं। साथ ही यहां मिट्टी के बर्त्तन में प्रसाद चढ़ाने का रिवाज है। प्रसाद वितरण भी मिट्टी के बर्तन में ही किया जाता है। कमिटी में अध्यक्ष उत्तम सिंह, राम पुकार, सचिव बबन कुमार, सागर बोसाक, कोषाध्यक्ष ललन, संदीप, नोटन राय, प्रीतम डीजे, रामकृष्ण, मुकेश, शुभंकर शामिल हैं। यहां दशमी के दिन महिलाओं के द्वारा सिंदूर खेला का भी रिवाज है। यहां मंदिर में भक्तों की आस्था ऐसी है कि दूसरे राज्य बंगाल के दालकोला, पांजीपाड़ा, इस्लामपूर से भी लोग मां दुर्गा के दर्शन के लिए आते हैं। यहां ऐसी भी मान्यता है कि यहां के कई लोग दूसरे राज्यों में नौकरी करते हैं। लेकिन साल में एक बार पूजा के समय छुट्टी लेकर यहां पहुंच ही जाते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / धर्मेन्द्र सिंह

   

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