लीलियम के उत्पादन से चमक रहा किसानाें का भाग्य, 21 काश्तकार बने मालामाल 

-उद्यान विभाग के प्रयास से काश्तकारों को मिल रहा बेहतर बाजार

गोपेश्वर, 5 फरवरी (हि.स.)। चमोली जिले में लीलियम की खेती को लेकर काश्तकारों का उत्साह बढ़ने लगा है। जिले में उद्यान विभाग की ओर से संचालित योजनाओं के तहत वर्तमान में 21 काश्तकार लीलियम की खेती कर लाखों की आय अर्जित कर रहे हैं। जिससे अब अन्य काश्तकार पर भी लीलियम उत्पादन को लेकर उत्सुक हैं। विभागीय अधिकारियों की मानें तो जनपद में वर्तमान तक 40 से अधिक किसान लीलियम उत्पादन के लिए आवेदन कर चुके हैं।

लीलियम का फूल गुलदस्ते के साथ ही शादी, विवाह, पार्टी और समारोह में भी सजावट के लिए उपयोग किया जाता है। जिससे लिलियम के फूल की बाजार में बेहतर मांग है। फूल की एक पंखुड़ी की बाजार में 50 से सौ रुपये तक की कीमत आसानी से मिल जाती है। ऐसे में फूल के बेहतर बाजार को देखते हुए उद्यान विभाग चमोली ने जिला योजना मद से 80 फीसदी सब्सिडी पर लीलियम उत्पादन के लिए काश्तकारों को प्रोत्साहित किया।

जिसके चलते बीते वर्ष 21 प्रगतिशील काश्तकारों के 26 पॉलीहाउस में करीब पांच लाख 50 हजार की लीलियम स्टिक का विपणन किया, वहीं इस वर्ष काश्तकारों की ओर 35 हजार बल्ब का रोपण किया गया था। जिसका विपणन कर काश्तकार करीब सात लाख 50 हजार की आय अर्जित कर चुके हैं। लीलियम का विपणन में हो रहे मुनाफे को देखते हुए अब जनपद में अन्य काश्तकारों का भी इस ओर रुझान बढ़ने लगा है। उद्यान विभाग के सहायक विकास अधिकारी रघुवीर सिंह राणा का कहना है कि काश्तकारों ओर से जहां बड़ी संख्या में लीलियम उत्पादन को लेकर जानकारी ली जा रही है। वहीं जनपद में 40 से अधिक काश्तकारों की ओर से आवेदन दिए गए हैं।

काश्तकारों ने विपणन के लिये विभाग के सहयोग से तैयार किया चैनल

चमोली में उत्पादित फूलों के विपणन के लिये जहां पहली बार विभाग की ओर से विपणन की व्यवस्था की गई, वहीं अब काश्तकारों ने विभाग के सहयोग से फूलों के विपणन का चैनल तैयार कर लिया है। काश्तकारों ने बताया कि उनके फूल की मांग गाजीपुर मंडी में बड़े पैमाने पर है। उन्होंने कहा कि पूर्व में फूलों की विपणन की समुचित व्यवस्था न होने से फूलों का उत्पादन करने से काश्तकार में शंका रहती थी। लेकिन अब विपणन की व्यवस्था होने के चलते फूलों का उत्पादन लाभप्रद साबित हो रहा है।

क्या है लीलियम का फूल

लिली के नाम से पुकारे जाने फूल का वैज्ञानिक नाम लिलियम है। यह लिलीयस कुल का पौधा है। यह छह पंखुड़ी वाला सफेद, नारंगी, पीले, लाल और गुलाबी रंगों का फूल होता है। जापान में जहां सफेल लिली को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, वहीं नारंगी लिली को वृद्धि और उत्साह का प्रतीक माना जाता। लिली के पौधे अर्द्ध कठोर होता है। इसके फूल कीप के आकार के होते हैं। इस का उपयोग सजावट के साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी किया जाता है। भारत में इसके फूल ऋतु में उगाए जाते हैं। उद्यान विशेषज्ञों के अनुसार पॉलीहाउस में फूल 70 दिनों में उपयोग के लिये तैयार हो जाता है।

क्या कहते हैं काश्तकार

गोपेश्वर निवासी नीरज भट्ट का कहना है कि चालू वित्तीय वर्ष में उन्होंने गोपेश्वर के समीप रौली-ग्वाड़ में 10 नाली भूमि क्रय और 20 नाली भूमि लीज पर लेकर सरकार की ओर से मिलने वाली सब्सिडी से पॉलीहाउस स्थापित किया। जिसमें उन्होंने जहां दो सौ किवी के पौधों का रोपण किया, वहीं चार सौ वर्ग मीटर में लीलियम का उत्पादन शुरू किया। जिससे वर्तमान तक नीरज दो लाख की शुद्ध आय प्राप्त कर चुके हैं। बैरागना गांव निवासी भूपाल सिंह राणा का कहना है कि बीते वर्ष घर के समीप ही उद्यान विभाग की ओर से मिले सहयोग से सौ स्क्वायर मीटर का पॉलीहाउस स्थापित किया था। जिसमें दो हजार बल्ब का रोपण किया था। इस वर्ष वर्तमान तक 44 हजार की आय अर्जित हो गई है।

क्या कहते है अधिकारी

चमोली के दशोली, पोखरी और कर्णप्रयाग में संरक्षित कृषिकरण में लीलियम का उत्पादन किया जा रहा है। वर्तमान जिले के 21 किसान लीलियम का उत्पादन कर रहे है, वहीं विभाग की ओर से फूलों के विपणन के लिये गाजीपुर मंडी का चैनल बनाया गया है। जिससे काश्तकारों को अपनी उपज के विपणन में सहूलित हो रही है और काश्तकारों को हो रहे मुनाफे को देखते हुए अन्य काश्तकारों का भी इस ओर रुझान बढ़ रहा है।

जेपी तिवारी, मुख्य कृषि एवं उद्यान अधिकारी, चमोली।

हिन्दुस्थान समाचार / जगदीश पोखरियाल

   

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