ARTICAL 370 सियासत का खेल 370 की बंदूक जम्मू के कंधे पर, नेशनल कांफ्रेंस के चुनावी घोषणा पत्र में प्रमुखता से शामिल था 370

JAMMU KASHMIR ARTICAL 370 : जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुच्छेद ३७० की बहाली को लेकर प्रस्ताव पारित कर दिया गया। यह कोई अचंभित करने वाली घटना नहीं है क्योंकि नेशनल कांफ्रेंस अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस मुद्दे को प्रमुखता से शामिल किए हुए थी। लेकिन सियासत का खेल देखिए कि जम्मू संभाग, जो अनुच्छेद ३७० हटाए जाने का हिमायती था और इसके हटने के बाद खुश था, लेकिन कश्मीरी राजनीति के पुरोधाओं ने जम्मू संभाग के ही नेता को उपमुख्यमंत्री बनाकर अपना उल्लू सीधा करने का रास्ता खोज निकाला और इसकी परिणति बीते दिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा में देखने को मिल भी गई जहां जम्मू संभाग के ही एक नेता ने अनुच्छेद ३७० की बहाली का प्रस्ताव रख डाला और उसे बिना चर्चा पास भी कर दिया गया। दशकों से कश्मीरी हुक्मरानों के आगे नतमस्तक होती जम्मू की जनता और यहां के नेता कब अपना जमीर जगा पाएंगे, यह अब सोचने वाली बात हो गई है। अब तो इस पर विचार करने को मजबूर होना पड़ेगा कि ऐसे ही नेताओं के कारण जम्मू की जनता दशकों से भेदभाव का दंश झेलती आई है और इस कारगुजारी के बाद हाल फिलहाल लगता भी नहीं कि जम्मू संभाग को इससे मुक्ति मिलने वाली है। कहते हैं कि राजा के बेटे शासन करने के लिए पैदा होते हैं लिहाजा जम्मू-कश्मीर में हुकूमत उन्हीं ‘राजाओं’ की रहेगा, जो कश्मीर संभाग में बैठकर केवल वहीं का हित सोचने वाली नीति पर चलते हुए जम्मू को दोयम दर्जे का समझते आए हैं। यह जम्मू संभाग की जनता का दुर्भाग्य है कि पूरा जोर लगाने के बावजूद उसके हित की बात सोचने वाली और तथाकथित देशभक्त और राष्ट्रवादी पार्टी केवल २८ सीटें ही जीत पाई और जम्मू-कश्मीर विधानसभा में मात्र दूसरे दर्जे की पार्टी बनकर रह गई। एक हकीकत यह भी है, और इसे नेशनल कांफ्रेंस, उसके उपाध्यक्ष मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और मुखिया फारुख अब्दुल्ला भी जानते हैं कि केवल विधानसभा में ३७० की बहाली का प्रस्ताव पारित करने से अनुच्छेद ३७० की बहाली नहीं हो सकती क्योंकि इसे केंद्र सरकार द्वारा विधिसम्मत रूप से संसद में कानून बनाकर ही रद्द किया गया था और इसमें सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मोहर लगा दी थी। ऐसी परिस्थितियों में ३७० की बहाली का राग अलापना केवल यहां की जनता को गुमराह करना ही कहा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर की उमर सरकार ऐसा करके केंद्र सरकार पर ३७० की बहाली को लेकर दबाव बनाना चाहती है या फिर जम्मू-कश्मीर की जनता का मन रखने के लिए ऐसी कवायद कर रही है। यदि सरकार को जम्मू-कश्मीर का हित देखना था तो उसे नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया फारुख अब्दुल्ला की बातों पर अमल करते हुए यहां के विकास, समस्याओं के निदान, बेरोजगारों की फौज को रोजगार देने, आतंकवाद से निपटने और कश्मीरी पंडितों की घर वापसी जैसे मुद्दों को प्राथमिकता से रखना चाहिए था न कि विधानसभा के पहले ही सत्र में केवल अपनी मनमानी करने के लिए इस तरह का प्रस्ताव रखना चाहिए था। अभी कुछ ही दिनों पहले फारुख अब्दुल्ला ने खुद कहा था कि जम्मू-कश्मीर की जनता के हित और सुविधाओं के आगे ३७० की बहाली कोई मुद्दा नहीं है और इस मुद्दे पर बाद में भी बात हो सकती है, लेकिन फिर यकायक ऐसा क्या नेकां का मूड चेंज हुआ कि उसने आनन फानन में अपने ही मुखिया नेता की बात को दरकिनार कर ३७० वापसी का प्रस्ताव विधानसभा में रख डाला। फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला बहुत पुराने घिसे हुए नेता हैं और वे जनता की नब्ज और नस को जानते हैं। उन्हें पता है कि जम्मू की जनता ३७० की वापसी की हिमायती नहीं है, इसीलिए उन्होंने जम्मू की जनता की आवाज बनने वाले नौशेरा विधायक को उपमुख्यमंत्री बनाया और ठीक उसी तर्ज पर जैसे लोहा लोहे को काटता है, उसी तरह जम्मू की जनता की काट के रूप में उनका इस्तेमाल करने का तरीका अख्तियार किया है जिसकी अभी तो यह पहली बानगी है। आगे देखिए अभी और क्या-क्या होता है?

   

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