संसार में बनाए जाने वाले सभी संबंध नाशवान या क्षणिक होते हैं : विशुद्ध सागर

इतवारी बाजार जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए जैन मुनि।

धमतरी, 26 सितंबर (हि.स.)। इतवारी बाजार स्थित जैन मंदिर में चातुर्मास प्रवचन में युवा संत परम पूज्य विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि मैं अर्थात मेरी आत्मा स्वतंत्र है, इसका निश्चय करने वाला निष्काम और आत्मज्ञानी बन सकता है। मैं वो हूं जो भगवान हैं, मैं जो हूं वही भगवान है। किंतु भगवान और मुझमें बस यही अंतर है कि उन्होंने अपनी आत्मा से अपने कर्मों के जाले को साफ कर लिया है और मैं कर्मों के जाले को अभी तक साफ नहीं कर पाया हूं। संसार में बनाए जाने वाले सभी संबंध नाशवान या क्षणिक होते हैं । इस संसार में अकेले आए थे और अकेले ही जाना है।

उन्होंने कहा कि मेरा स्वरूप सिद्ध के समान अर्थात भव्यात्मा के समान है। मेरा वास्तविक स्वरूप अजर अमर और शाश्वत है। हे परमात्मा आप अपने निज स्वरूप को जान गए इसलिए आपने सुख के भंडार काे प्राप्त कर लिया। लेकिन मैं संसार के राग में फंसकर आज तक अपने वास्तविक अर्थात निज स्वरूप को जान नहीं पाया हूं। इसलिए संसार के दुखों से दुखी हो रहा हूं। अब आपको देखकर मुझे भी अपने निज स्वरूप को जानने का प्रयास करना है। जो मन को स्वीकार हो जाए उसे मानने में कोई कठिनाई नहीं होती। ज्ञानी कहते हैं इस संसार में अकेले आए थे और अकेले ही जाना है। हम इस संसार में जो भी संबंध बनाते हैं, वो सब हमारे जन्म के बाद बनते हैं और मृत्यु के साथ टूट जाते है। अर्थात संसार में बनाए जाने वाले सभी संबंध नाशवान या क्षणिक होते हैं। अब हमें परमात्मा से शाश्वत संबंध बनाने का प्रयास करना है। इन्हीं संबंधों के बीच हम सुख और दुख का अनुभव करते है। अनुकूल परिस्थिति सुख का और प्रतिकूल परिस्थिति दुख का कारण बन जाता है। भगवान कहते हैं जो एक को जान लेता है वो सबको जान लेता है और जो एक को नहीं जानता वो कुछ भी नहीं जानता। एक बार जो अपनी प्रभुता को जान लेगा वो कभी भी संसार में सुख खोजने का प्रयास नहीं करेगा। इस संसार में हमारी गलती देख और उसे दूर करने का अधिकार केवल गुरु को होता है। किंतु हम संसार में सबकी गलती देखते है और बताते हैं विचार करना है। क्या हमें ऐसा अधिकार है? अगर देखना ही है तो स्वयं की गलती को देखना चाहिए।

हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा

   

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