मकर संक्रांति का खगोलीय, प्राकृतिक और आयुर्वेदिक महत्व भी है : डॉ अवनीश उपाध्याय

हरिद्वार, 14 जनवरी (हि.स.)। मकर संक्रांति मात्र एक स्नान पर्व नहीं है बल्कि इसका व्यापक खगोलीय, प्राकृतिक और आयुर्वेदिक महत्व भी है। मकर संक्रांति का महत्व विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में यह जानकारी देते हुए ऋषिकुल राजकीय आयुर्वैदिक कॉलेज के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टर अवनीश उपाध्याय ने बताया कि मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण होने का प्रतीक है। खगोलीय दृष्टि से यह दिन बड़ा और रात छोटी होने की शुरुआत करता है, जो मौसम और जैविक घड़ी पर प्रभाव डालता है।

उन्होंने कहा कि तिल-गुड़, मूंगफली, हल्दी और अदरक का सेवन वात और कफ दोष को संतुलित करता है।तिल के तेल से मालिश त्वचा को पोषण देती है और सर्दी से बचाती है।

प्राकृतिक और वैज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ. रुचिता त्रिपाठी (अश्वमेध हेल्थ एंड वेलनेस संस्थान, हरिद्वार) ने बताया कि उत्तरायण में सूर्य स्नान (सुबह की धूप) से विटामिन डी मिलता है, जो हड्डियों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।

उन्होंने कहा कि मकर संक्रांति का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक रूप से अद्वितीय है। यह पर्व स्वास्थ्य, प्रकृति और सकारात्मकता का संदेश देता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

   

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