झज्जर : चीन सीमा के निकट अरुणाचल प्रदेश में स्थापित की गई ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी की प्रतिमा
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- Mar 19, 2025

-सेना द्वारा आयोजित लोकार्पण समारोह में बलिदानी के परिजनों ने भी लिया भाग
झज्जर, 19 मार्च (हि.स.)। भारतीय सेना ने चीन के निकट अरुणाचल प्रदेश के फडुंग में झज्जर जिला के गांव सांखोल के बलिदान योद्धा ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी की प्रतिमा स्थापित की है। इससे सीमा पर तैनात सैनिकों को हर परिस्थिति में देश के लिए मजबूती से टिके रहने की प्रेरणा मिलेगी। स्मारक के उद्घाटन समारोह में ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी के बेटे बलराज राठी, उनकी पत्नी दीपक और ब्रिगेडियर होशियार सिंह के भाई देवराज सिंह ने भी भाग लिया।
बलिदानी ब्रिगेडियर होशियार सिंह के इन परिजनों को सेवा की ओर से आमंत्रित किया गया था। स्मारक का लोकार्पण गत सोमवार को किया गया। बहादुरगढ़ शहर की सीमा में समाहित हो चुके गांव सांखोल में जन्मे ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी ने भारत-चीन युद्ध में 27 नवंबर 1962 को दुश्मन की सेवा से लड़ते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया था। ब्रिगेडियर होशियार सिंह की शहादत को 62 बरस से अधिक समय हो गया है। मगर वह अब भी क्षेत्रवासियों के दिलों में जीवित हैं। जब भी कहीं उनका नाम सामने आता है तो बहादुरगढ़ के लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। होशियार सिंह वर्ष-1934 में सेना (राजपूताना राइफल्स-2) में राइफल मैन के तौर पर भर्ती हुए और 1940 में हवलदार बन गए।
विश्व युद्ध के दौरान 1941 में किंग कमीशन की अगुवाई की और इसी वर्ष जुलाई में कमिश्नरेट ऑफिसर बन गए। चार मार्च 1942 को कैप्टन और 2 साल बाद सितंबर 1943 में सेना में मेजर पद पर सुशोभित हुए। वह 1947 के बाद मिलट्री एकेडमी देहरादून में चीफ इंस्ट्रक्टर बन गए। 1952 में उन्हें राजपूताना राइफल-2 का जिम्मा मिल गया। 1956 में राजपूताना राइफल के दिल्ली स्थित रजिमेंटल सेंटर में कमांडेंट बने। फरवरी 1961 में डिप्टी कमांडेंट बना दिया गया। इसी वर्ष 22 अक्टूबर को ये डिप्टी कमांडेंट से ब्रिगेडियर होशियार सिंह बन गए।
चीन के साथ युद्ध में जब हालात बिगड़ रहे थे तो ब्रिगेडियर होशियार सिंह सेला पास क्षेत्र में मोर्चा संभाले हुए थे। वीरों की भांति लड़ते-लड़ते वो शहीद हो गए। उनका पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव तक नहीं आ सका। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, पंजाब के सीएम प्रताप सिंह कैरों व सेना के बड़े अधिकारी परिवार को सांत्वना देने आए थे। पहली पुण्य तिथि पर इंदिरा गांधी भी गांव में परिवार से मिलने आई थी।
होशियार सिंह कबड्डी के माहिर खिलाड़ी थे। वर्ष-1935 में उनका विवाह नौनंद गांव (रोहतक) की फीम कौर के साथ हुआ। जिससे उनकी एक बेटी समेत पांच संतानें हुईं। होशियार सिंह के शहीद होने के बाद इनकी पत्नी फीम कौर की तबीयत खराब रहने लगी। पांच वर्ष बाद 1967 में अपने भाई के यहां फीम ने अंतिम सांस ली। फिलहाल ब्रिगेडियर होशियार सिंह की सबसे बड़ी बेटी राजवंती व छोटे बेटे बलराज, देवराज व गजेंद्र जीवित हैं। एक बेटे राजेंद्र का देहांत हो चुका है। गांव सांखोल में इनके परिवार के सदस्य आज भी रह रहे हैं।
शहीद ब्रिगेडियर होशियार सिंह की याद में बहादुरगढ़ और देहरादून में खेल स्टेडियम हैं। दिल्ली में सरोजनी नगर के पास एक सड़क भी इनके नाम से है। बहादुरगढ़ में भी एक मार्ग इनके नाम से है। रोहतक-दिल्ली रोड पर बीडीओ आफिस के पास इनकी प्रतिमा लगी है। पिछले साल सिटी पार्क मेट्रो स्टेशन का नाम बदलकर इनके नाम पर रखा गया है। त्रिवेणी पूर्व सैनिक संगठन बहादुरगढ़ के अध्यक्ष श्रीनिवास छिकारा और सांखोल गांव निवासी राजेश कलसन ने चीन की सीमा के निकट बलिदानी ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी की प्रतिमा लगाने से सराहना है। उन्होंने कहा कि इससे योद्धाओं का हौसला बढ़ेगा।
हिन्दुस्थान समाचार / शील भारद्वाज