मुगल काल में भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने में रामचरित मानस ने निभाई भूमिका

बलिया, 11 अगस्त (हि.स.)। अन्तरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान अयोध्या व संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा बापू भवन क्रांति मैदान में रविवार को तुलसीदास जयंती समारोहपूर्वक मनाई गई। इसमें विद्वानों ने कहा कि मुगल शासनकाल में भारतीय संस्कृति, संस्कार और मानवीय आदर्शों को संरक्षित करने में गोस्वामी तुलसीदास की कृति रामचरित मानस ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

विद्वानों ने कहा कि ब्रिटिश शासनकाल में मारिशस, टोबेगो, त्रिनिदाद, फिजी, ब्रिटिश गुयाना व डच गुयाना आदि देशों ले जाये गए गिरमिटिया कामगार अपने साथ रामचरित मानस लेकर गए थे। जिसके कारण यहां भारतीय रामायण जीवन पद्धति की प्रेम, करुणा, सेवा व परमार्थ का प्रसार हुआ। इसके पहले कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन और रामचरित मानस पाठ से हुआ।

समारोह में डा. जनार्दन चतुर्वेदी कश्यप, राधिका तिवारी, विंध्याचल सिंह, लल्लन देहाती, डा.कादंबिनी सिंह, रमेश चंद श्रीवास्तव, शिवजी पाण्डेय रसराज, भोजपुरी भूषण नन्दजी नंदा, हीरालाल यादव 'हीरा', बिशुनदेव पाण्डेय और फतेहचंद बेचैन को सम्मानित किया गया। कवि सम्मेलन में शिवजी रसराज ने वेद ऋचा में रमने वाली, सप्त स्वरों को जनने वाली, वीणा के सरगम से निकले षष्ठ राग औ रागिनी सुनाई। लल्लन देहाती ने 'हाँ बसा लूंगा, अपनी रुह में मैं तो, जिद ये मेरी वाजिब है, हक मेरा पुराना है' व डाॅ. कादम्बिनी सिंह ने 'हम त रामजी के नेहिया में अझुराइल बानी, अजोधा में आइल बानी ना' से सबका ध्यान खींचा।

वहीं, राधिका तिवारी ने सोहर गीत 'राजपुर नगरी के कगरी, जहंवा जनमल एक बालक हो रामा...' गाकर तुलसीदास को याद किया। इस अवसर पर रमेश चन्द श्रीवास्तव की पुस्तक सरिता का विमोचन किया गया। जागरुक शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान के विजय प्रकाश पाण्डेय, पंकज कुमार, काशी ठाकुर, छोटेलाल प्रजापति ने मानस पाठ और भजन प्रस्तुत किया। समारोह की अध्यक्षता महर्षि अशोक और संचालन डा. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने किया। संस्थान के सचिव अभय सिंह कुशवाहा ने आभार प्रकट किया।

हिन्दुस्थान समाचार / नीतू तिवारी / मोहित वर्मा

   

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