भारतीय सैनिकों से डरकर भाग निकला था कर्नल कार्माइकल स्मिथ

इतिहासकार डॉ. अमित पाठक

मेरठ, 13 अगस्त (हि.स.)। साल 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत मेरठ की क्रांतिधरा से हुई थी। 10 मई 1987 को अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाहियों ने क्रांति का बिगुल फूंक दिया था। भारतीय सैनिकों के विद्रोह के बाद अंग्रेज कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल कार्माइकल स्मिथ डरकर भाग निकला था। इसके बाद उसे इंग्लैंड वापस बुला लिया गया था।

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पीछे अंग्रेजों द्वारा नए कारतूसों का प्रयोग अनिवार्य करना था। इन कारतूसों को दागने से पहले मुंह से खींचना पड़ता था। बताया जाता है कि इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया था। यह बात अंग्रेज सेना के भारतीय सैनिकों में फैल गई थी।

इस कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के सैनिकों ने नए कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार कर दिया था। उस मेरठ में अंग्रेजी सेना के कैवेलरी कमांड लेफ्टिनपेंट कर्नल कार्माइकल स्मिथ थे। कार्माइकल स्मिथ ने ही इन नए कारतूसों को प्रयोग करने का आदेश दिया था। इतिहासकार डॉ. अमित पाठक के अनुसार, इस आदेश का पालन करने से 85 भारतीय सैनिकों ने मना कर दिया था। विरोध करने पर उनका कोर्ट मार्शल हुआ और दस वर्ष की सजा सुनाई गई थी। भारतीय सैनिकों को अपमानित करने वाले उनके कृत्य ने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों के मन में चिंगारी सुगल उठी थी।

डॉ. अमित पाठक ने बताया कि वर्तमान में वेस्ट ऐंड रोड पर जीटीबी तिराहे पर लेफ्टिनेंट कर्नल कार्माइकल स्मिथ का बंगला था। जिस दिन क्रांति की शुरूआत हुई, उस समय कार्माइकल स्मिथ अपने बंगले ही वेटनरी सर्जन फिलिप व एक अन्य अंग्रेज अधिकारी के साथ था। शोर सुनकर सभी बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि अंग्रेज सैनिकों के पीछे भारतीय सिपाही दौड़ रहे हैं। यह देखकर स्मिथ घोड़े पर बैठकर वहां से बचकर भाग गया। जबकि भारतीय सैनिकों ने वेटनरी सर्जन फिलिप को मार डाला। इसके बाद स्मिथ को इंग्लैंड वापस बुला लिया गया।

अंग्रेजी सेना ने भारतीय सैनिकों के विरोध के कारण नए चर्बी वाले कारतूस पर रोक लगा दी थी। इसके बाद भी कार्माइकल स्मिथ ने 24 अप्रैल को उसी कारतूस को हाथ से खोलकर इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें 85 सैनिकों ने कारतूस को हाथ लगाने से मना कर दिया। इसके बाद इन सैनिकों को कोर्ट मार्शल करके सजा दी गई और अपमानित किया गया। इससे भारतीय सैनिकों में क्रांति की चिंगारी सुलग उठी और समय से पहले ही दस मई को क्रांति भड़क उठी।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.कुलदीप त्यागी / मुकुंद

   

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