डीआरडीओ ने नौसेना को सौंपी छह स्वदेशी डिजाइन और विकसित उत्पाद प्रणालियां


- भारत में निर्मित पहला किफायती उन्नत कार्बन फाइबर फ़ुट प्रोस्थेसिस का तेलंगाना में अनावरण

नई दिल्ली, 15 जुलाई (हि.स.)। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने भारतीय नौसेना को 6 रणनीतिक स्वदेशी रूप से विकसित प्रणालियां सौंपी हैं, जिससे समुद्री सेना की ताकत बढ़ेगी। इसके अलावा स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया पहला भारत में निर्मित किफायती उन्नत कार्बन फाइबर फ़ुट प्रोस्थेसिस का तेलंगाना में अनावरण किया गया। आयातित कृत्रिम पैर​ की लागत लगभग दो लाख रुपये है, ​जबकि भारत में ​विकसित इस उत्पाद की कीमत 20​ हजार रुपये से भी कम होगी।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास सचिव और डीआरडीओ अध्यक्ष समीर वी. कामथ ने रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर में आयोजित एक विशेष समारोह में नौसेना मुख्यालय के रियर एडमिरल श्रीराम अमूर एसीएनएस (एसएसपी) को ये उत्पाद सौंपे। भारतीय नौसेना को सौंपे गए छह रणनीतिक स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित उत्पादों में गामा विकिरण हवाई निगरानी प्रणाली (ग्रास), पर्यावरण निगरानी वाहन (ईएसवी), वाहन रेडियोलॉजिकल संदूषण निगरानी प्रणाली (वीआरसीएमएस), जल के भीतर गामा विकिरण निगरानी प्रणाली (यूजीआरएमएस), डर्ट एक्सट्रैक्टर और क्रॉस संदूषण मॉनिटर (डेकॉम) और ऑर्गन रेडियोधर्मिता पहचान प्रणाली (ओआरडीएस) हैं।

मानव रहित गामा विकिरण हवाई निगरानी प्रणाली पर्यावरणीय निरंतर निरीक्षण और गंभीर दुर्घटनाओं में आपातकालीन निरीक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। गामा विकिरण डिटेक्टर एक विकिरण निगरानी प्रणाली का दिल बनाता है, इसलिए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के आसपास के क्षेत्र में इस तरह के डिटेक्टरों की तैनाती महत्वपूर्ण है। पर्यावरण निगरानी वाहन विभिन्न पर्यावरणीय मापदंडों को मापने और निगरानी करने के लिए सेंसर और उपकरणों से सुसज्जित होता है। यह वाहन वायु गुणवत्ता, जल गुणवत्ता, ध्वनि प्रदूषण और विकिरण स्तर जैसे विभिन्न कारकों की निगरानी करके डेटा को एकत्र करके विश्लेषण के लिए भेजता है।

​नौसेना को सौंपी गई वाहन रेडियोलॉजिकल संदूषण निगरानी प्रणाली वाहनों में रेडियोधर्मी संदूषण का पता लगाने के लिए डि​जाइन की गई है, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित ​करने के साथ ही प्रदूषण को फैलने से रोका जा सके। ये प्रणालि​यां आमतौर पर वाहनों के माध्यम से गुजरने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों का पता लगाने के लिए डिटेक्टरों का उपयोग कर​के खतरे की स्थिति में अलर्ट जारी करती हैं। गामा विकिरण निगरानी प्रणाली पानी के अंदर गामा विकिरण के स्तर को मापने के लिए एक विशेष प्रणाली है। यह प्रणाली समुद्र, झीलों या अन्य जल निकायों में रेडियोधर्मी प्रदूषण या असामान्य विकिरण स्तरों का पता लगाने में मदद करती है।

इस प्रणाली में आमतौर पर एक या एक से अधिक गामा किरण डिटेक्टर होते हैं, जो पानी के भीतर स्थापित किए जाते हैं। ये डिटेक्टर गामा विकिरण को माप​ने के बाद डेटा को एक केंद्रीय इकाई में भेजते हैं, जहां इसे संसाधित और विश्लेषण किया जाता है। गामा विकिरण उच्च ऊर्जा वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं, जो रेडियोधर्मी तत्वों के परमाणु नाभिक के क्षय से निकलती हैं। ये किरणें मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं, इसलिए उनका निरंतर निगरानी करना महत्वपूर्ण है। डर्ट एक्सट्रैक्टर-कम-क्रॉस कंटैमिनेशन मॉनिटरकिसी व्यक्ति के सक्रिय क्षेत्र से सुरक्षित क्षेत्र में आने पर क्रॉस​ प्रदूषण से बचाता है। ऑर्गन रेडियोधर्मिता पहचान प्रणाली भूविज्ञान, पुरातत्व और पर्यावरण निगरानी में उपयोगी है।

स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित भारत में निर्मित ​पहला कि​फायती उन्नत कार्बन ​फाइबर फ़ुट प्रोस्थेसिस​ 'आत्मनिर्भर भारत' के तहत एक बड़ी उपलब्धि है।​ डीआरडीएल ​के निदेशक डॉ. जीए श्रीनिवास मूर्ति और एम्स बीबीनगर ​के कार्यकारी निदेशक​ डॉ. अहंथम संता सिंह ​ने बताया कि इसका 125 किलोग्राम तक के भार के लिए बायोमैकेनिकल रूप से परीक्षण किया गया है। विभिन्न भार के रोगियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसके तीन प्रकार हैं। उच्च​ गुणवत्ता​ वाले इस​ कृत्रिम पैर को कि​फायती ​दामों में डि​जाइन किया गया है।​ आयातित कृत्रिम पैर​ की लागत लगभग दो लाख रुपये है, ​जबकि भारत में ​विकसित इस उत्पाद की कीमत 20​ हजार रुपये से भी कम होगी। इसलिए​ भारत में निम्न आय वर्ग के विकलांगों के लिए उच्च-गुणवत्ता वाले कृत्रिम अंगों की​ पहुंच में उल्लेखनीय सुधार​ होने की उम्मीद है।

 हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत निगम

   

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