मोको कहां ढूँढ़े रे बन्दे....नृत्य नाटिका पर दर्शकों ने की खूब वाहवाही 

बाराबंकी, 27 अक्टूबर (हि.स.)। देवा मेला महोत्सव में शनिवार को सांस्कृतिक मंच पर यायावर रंगमण्डल द्वारा नृत्य नाटिका ‘मोको कहां ढूँढ़े रे बन्दे..., की प्रस्तुति दी। जिसका निर्देशन यायावर रंगमण्डल के निदेशक पुनीत मित्तल ने और लेखन छवि मिश्रा ने किया।

कबीरा ये घर प्रेम का खाला का घर नहीं....' सूफी संत कबीर की ये पंक्तियां आधुनिक और फ़ास्ट फूड कल्चर के इस दौर में और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं जहाँ हमारे जीवन में सच्चे प्रेम की कोई जगह नहीं बची है। समाज भौतिक सुखों की तरफ भागता जा रहा है। इस कारण मानवीय संवेदनाएं व आपसी सम्बन्ध टूटते बिखरते जा रहे हैं। आज प्रेम की परिभाषा ही बदलती जा रही है जो वर्तमान समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक है। ऐसे में सूफियाना सन्देश इस सामाजिक विघटन को बचाने में सहायक हो सकता है।

मोको कहां ढूँढ़े रे बन्दे में शारीरिक यानी फिज़िकल मूवमेन्ट्स के साथ अन्य भारतीय शास्त्रीय व लोक नृत्यों और संवादों के माध्यम से नृत्य नाटिका का पूरा ताना बाना बुना गया। अंशिका पाठक, ईशा रतन, मिशा रतन, एम्बर प्रगति गुप्ता, दिलप्रीत, आद्या घोषाल, अक्षिता मिश्रा ने सराहनीय प्रस्तुति दी। सुश्रुत गुप्ता ने अपनी कला से दर्शकों का दिल जीता। प्रकाश परिकल्पना एवं संचालन मो हफीज़, मंच व्यवस्था अनूप कुमार सिंह, रुप सज्जा, मनोज वर्मा का रहा।

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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज कुमार चतुवेर्दी

   

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