बिना स्त्रियों के संभव नहीं, विकसित भारत की संकल्पना का विमर्श : मालिनी अवस्थी
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- Mar 02, 2025
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लखनऊ, 02 मार्च(हि.स.)। श्रीराम परिषद कार्यक्रम में द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में मातृशक्ति से राष्ट्रशक्ति विषय पर लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि आधुनिक और विकसित भारत की संकल्पना का विमर्श बिना स्त्रियों के संभव नहीं है।
श्री गुरु वरिष्ठ न्यास द्वारा आयोजित श्रीराम परिषद कार्यक्रम में मालिनी अवस्थी ने कहा कि जब हमने होश संभाला था, तबका स्त्री विमर्श बेड़ियों वाला था। गार्गी, अहिल्या और कपाला किताबी बातें रही हैं। स्त्रियों के हिस्से बेड़ियां और शोषण आया है। आज बदलाव का दौर है, स्त्रियां समाज के हर पायदान में अपना मुकाम हासिल कर रही हैं। भारत में स्त्रियों का विमर्श बिना मां की कहानियों के संभव नहीं है।
प्रसिद्ध लेखिका एवं शिक्षिका दीपाली पाटवड़कर ने कहा कि हमारी पहली गुरु मेरी माता है। मेरे बच्चों की भी पहली गुरु मेरी ही मां है। जब हम अहिल्या देवी की बात करते हैं तो उनकी सास गौतमा बाई होलकर ने ही उन्हें सिखाया, क्योंकि उनकी उम्र आठ वर्ष ही थी। रानी दुर्गावती को तो उनकी मां और पिता ने सारे युद्ध कौशल सिखाए। पितृसत्तात्मक व्यवस्था तो यूरोप की देन है। भारत में तो माँ ही परिवार और संस्कार की व्यवस्था देने वाली संस्था है।
उन्होंने कहा कि रानी दुर्गावती ने तो अपने राज्य गढ़मंडल के गांवों का निरीक्षण करते हुए तालाब बनवाये, रास्ते बनवाये, अन्न क्षेत्र की शुरूआत करायी। रानी अहिल्याबाई ने देश में मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। गांव के बच्चों के लिए तत्कालीन विद्यालय बनवायें। रानी दुर्गावती की शासन व्यवस्था तो अनुकरणीय हैं।
कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता शेफाली वैद्य ने कहा कि महाराष्ट्र में राम-कृष्ण की कहानियों के साथ शिवाजी और खासकर उनकी मां जीजाबाई का उल्लेख जरूर होता है। शिवाजी को मां जीजाबाई ने इस लायक़ बनाया, शिवाजी ने निज़ामशाही से निकलकर हिंदवी स्वराज्य की स्थापना कर डाली। गुजरात की रानी नायिकी देवी ने मोहम्मद गोरी को युद्ध में हराया था तो चोलराजवंश की रानी सिम्बियन देवी ने शासन कैसे चलाया जाता है, यह दिखाया था।
वरिष्ठ पत्रकार ऋचा अनिरुद्ध ने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि बिना लक्ष्मीबाई के भारतीय स्त्री विमर्श संभव नहीं है। किस तरह से लक्ष्मीबाई ने झांसी में स्त्री सेना तैयार कर दी। पहले उन्होंने लड़ाई नहीं शुरू की पहले उन्होंने अंग्रेज़ों से अधिकार की बात कही अपने बेटे को मान्यता देने की बात कही जब बात नहीं बनी तो उन्होंने युद्ध लड़ा लेकिन दासता नहीं स्वीकारी। हालांकि झांसी की रानी का उल्लेख आज कल की महिलाओं के लिए नकारात्मक या व्यंग्यात्मक लहजे में होता है। इसमें बदलाव होना चाहिए लक्ष्मीबाई बनना कोई आसान काम नहीं है। यह गौरव की बात है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श.चन्द्र