संस्कृत व्याकरण विश्व की सबसे वैज्ञानिक व्याकरण प्रणाली: जगद्गुरु रामभद्राचार्य
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- Mar 24, 2025

वाराणसी, 24 मार्च (हि.स.)। तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि संस्कृत व्याकरण विश्व की सबसे वैज्ञानिक व्याकरण प्रणालियों में से एक है, जिसका प्रभाव आधुनिक भाषाओं की संरचना पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जगदगुरू सोमवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग में आयोजित पांच दिवसीय संधि विषयक व्याकरण प्रबोध कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर जगदगुरू ज्ञान की गंगा बहाते हुए उपस्थित विद्यार्थियों और विद्वानों को संस्कृत व्याकरण के महत्व से परिचित करा रहे थे।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संधि नियमों की गहराई को बताते हुए कहा कि ये नियम हमें ध्वनियों के सामंजस्य और उच्चारण की शुद्धता का बोध कराते हैं। उन्होंने संस्कृत व्याकरण के वैज्ञानिक पक्ष को भी रेखांकित किया और इसे सिर्फ एक भाषा अध्ययन का विषय नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और वैदिक ज्ञान परंपरा का मूल आधार बताया। कार्यशाला में विशिष्ट अतिथि पाणिनि वैदिक संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रमेश चंद्र पंडा ने संस्कृत व्याकरण की अद्वितीयता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह भाषा केवल संरचना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के सूक्ष्म और गहन तत्वों को उजागर करती है।
प्रो. जयशंकर लाल त्रिपाठी ने संस्कृत व्याकरण की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह न केवल दार्शनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आधुनिक कंप्यूटर विज्ञान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास में भी अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकता है। उन्होंने संस्कृत के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विस्तार से समझाया और बताया कि यह व्याकरण प्रणाली न केवल तार्किक है, बल्कि अत्यंत सुव्यवस्थित भी है।
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के प्रमुख प्रो. राजाराम शुक्ल ने अध्यक्षता की, जबकि स्वागत भाषण पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रामनारायण द्विवेदी और विषय उपस्थापन विभागाध्यक्ष प्रो. रमाकांत पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर लगभग पाँच सौ छात्रों ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए मंत्रोच्चार और स्वस्तिवाचन किया। कार्यक्रम में प्रो. रमेश चंद्र पंडा, प्रो. जयशंकर लाल त्रिपाठी, और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रियव्रत मिश्र ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो. शैलेश तिवारी ने किया। इस अवसर पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य को अभिनंदन पत्र भी भेंट किया गया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी