सोचने की क्षमता और मानसिक स्थिरता को विकसित करती है संस्कृत : लखावत

जयपुर, 20 मार्च (हि.स.)। संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति, धार्मिक परंपराओं और ज्ञान का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। यह न केवल धार्मिक ग्रंथों का आधार है, बल्कि विज्ञान, गणित, चिकित्सा और दर्शन के विकास में भी इसका योगदान अत्यधिक रहा है। यह बात गुरुवार को राजस्थान धरोहर प्राधिकरण के अध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत ने जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस समारोह में कही।

उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा का अध्ययन मानव मस्तिष्क की सोचने की क्षमता को विकसित करता है और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है। संस्कृत शब्दावली और व्याकरण की संरचना अनेक भाषाओं के विकास में भी सहायक रही है।

समारोह के मुख्य वक्ता प्रो. मोहनलाल शर्मा ने संस्कृत की प्रासंगिकता और उपयोगिता पर विशिष्ट व्यख्यान देते हुए कहा कि वर्तमान समय में संस्कृत भाषा का प्रासंगिकता बढ़ रही है, खासकर जब हम वैदिक साहित्य, आयुर्वेद और योग के क्षेत्र में इसका महत्व समझने लगे हैं। संस्कृत के शिक्षण से भारत की सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण होता है। इसे आधुनिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करने से न केवल भाषा का समृद्ध इतिहास पुनर्जीवित होगा, बल्कि यह भारतीयता के प्रति सम्मान और गर्व को भी बढ़ावा देगा।

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा कि आधुनिक समय में भी संस्कृत का अध्ययन हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी समझ विकसित करने में सहायक होता है। इस भाषा का अध्ययन न केवल मानसिक विकास को बढ़ावा देता है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक संवाद के लिए भी आवश्यक है। संस्कृत को बढ़ावा देने से न केवल हम अपनी धरोहर का संरक्षण कर सकते हैं, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करेगा।

संयोजक शास्त्री कोसलेन्द्रदास ने बताया कि मंगलाचरण डॉ. नारायण होसमने और डॉ. राजधर मिश्र एवं धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव नरेंद्र कुमार वर्मा ने किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / रोहित

   

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