‘होली जलियांवालान बाग मची…’, ‘कैसे हो इरविन ऐतवार तुम्हार….’से ‘डॉन्ट टच माइ अंचलिया मोहन रसिया’ तक बदलती भी रही है कुमाउनी होली

-कुमाउनी होली में होते रहे हैं नये प्रयोग भी, तत्कालीन परिस्थितियों पर कड़े तंज भी कसती रही है होली

नैनीताल, 14 मार्च (हि.स.)। अपने शास्त्रीय गायन के लिए ब्रज एवं मथुरा की होली के साथ देश-दुनिया में विख्यात कुमाउनी होली के एक विशेषता यह भी है कि यह स्वयं को वर्तमान के साथ जोड़ती हुई चलती रही है। साथ ही इसमें समय-समय पर नये-नये प्रयोग भी होते रहे हैं। यहां की पारंपरिक चांचरी व गीतों में ‘जोड़’ डालने की परंपरा भी हर वर्ष और वर्ष दर वर्ष समृद्ध करती रही है, और यहां के लोककवि भी होली पर नए प्रासंगिक रचनाएँ देते रहे हैं।

कुमाउनी होली के पुराने जानकार बताते हैं कि 1919 में जलियावालां बाग में हुऐ नरसंहार पर कुमाऊं में गौर्दा ने 1920 की होलियों में ‘होली जलियांवालान बाग मची…’ के रूप में नऐ होली गीत से अभिव्यक्ति दी। इसी प्रकार गुलामी के दौर में ‘होली खेलनू कसी यास हालन में, छन भारत लाल बेहालन में….’ तथा ‘कैसे हो इरविन ऐतवार तुम्हार….’ तथा आजादी के आन्दोलन के दौर में तत्कालीन शासन व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुये ‘अपना गुलामी से नाम कटा दो बलम, स्वदेशी में नाम लिखा दो बलम, मैं भी स्वदेशी प्रचार करूंगी, मोहे परदे से अब तो हटा दो बलम, देश की अपनी बैरागन बनूंगी, सब चीर विदेशी जला दो बलम, अपना गुलामी से नाम कटा दो बलम’ और विदेशी फैशन के खिलाफ ‘छोड़ो कुबाण नवल रसिया’ जैसी होलियों का सृजन हुआ तो आजाद भारत में आजादी के नाम पर उत्श्रृंखलता और गरीबी की स्थितियों पर भी कुमाउनी होली इन बोलों के साथ कटाक्ष किये बिना नहीं रही ‘कां हरला यां चीर कन्हैया, स्यैंणिन अंग उघड़िये छू, खीर भद्याली चाटणा हूं नैं, भूखैल पेट चिमड़ियै छू, गूड़ चांणा लै हमू थैं न्हैंतन, आङन लागी भिदड़ियै छू’ यानी कन्हैया यहां किसकी चीर हरोगे, यहां तो स्त्रियों के पहले से ही अंग खुले हुये हैं। इधर उत्तराखंड राज्य बनने के बाद गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ ने इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए 2001 की होलियों में ‘अली बेर की होली उनरै नाम, करि लिया उनरि लै फाम, खटीमा मंसूरी रंगै ग्येईं जो हंसी हंसी दी गयीं ज्यान, होली की बधै छू सबू कैं…’ जैसी अभिव्यक्ति दी। इसी कड़ी में आगे चुनावों के दौर में भी गिर्दा ‘ये रंग चुनावी रंग ठहरा…’ जैसी होलियों का सृजन किया।

लेकिन इधर कुमाउनी होली पर नये दौर में अंग्रेजी और सूफियान कलाम के रंग भी चढ़ते नजर आये हैं। जहां एक ओर ‘डॉन्ट टच माइ अंचलिया मोहन रसिया, आई एम ए लेडी श्रीवृंदावन की, यू आर द लॉर्ड ऑफ गोकुल रसिया’ के साथ अंग्रेजी के शब्द भी कुमाउनी होली में प्रयोग किए गए हैं तो वहीं ‘आज रंग है मेरे ख्वाजा के घर में, मेरे महबूब के घर में, मोहे रंग दे ख्वाजा अपने ही रंग में, तुम्हारे हाथ हैं सुहाग मेरा, मैं तो जोबन तुम पै लुटा बैठी’ और ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके, मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके’ जैसे सूफियाना कलाम भी होली के रूप में पेश किये जा रहे हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी

   

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