धूमधाम से मनाई गई गुरु पूर्णिमा। गुरु ही शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं, मंदिर में विशेष पूजा अर्चना लोगों ने श्रद्धा से शीश नवाया

लखनपुर अनिल शर्मा :गुरु पूर्णिमा के पर्व पर लोगों ने अपने अपने तरीके से गुरु चरणों में हाजिरी  लगाकर श्रद्धा से शीश नवाया हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कस्बे के प्राचीन किला मंदिर में विशेष तौर पर श्री 1008 पूर्णा गिरि गुरु  महाराज के आश्रम में सुबह से ही उनके शिष्यों का तांता लगना शुरू हो गया किला मंदिर में सर्वप्रथम गुरु की मूर्ति का पांच द्रव्य से स्नान करवाया गया जिसके बाद सुगंधित पुष्प व फूल  वस्त्र मूर्ति को पहनाकर पूजा की गई फिर आयोजित यज्ञ में आहुतियां डाली गई मंदिर के महंत शांतिगिरी महाराज ने विशेष तौर पर गुरु पूर्णिमा पर लखनपुर में विशेष कार्यक्रम का आयोजन रखा था वही चक घोटा  बापू आसाराम के आश्रम में गुरु पूर्णिमा का विशेष तौर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें हजारों की संख्या में बापू के साधकों ने गुरु पूजा के साथ जीवन में गुरु की भक्ति जीवन में बढ़ने की प्रार्थना की सबसे पहले यहां कीर्तन किया गया जिसमें पूरा वातावरण हरि ओम के के गूँज से गुंजायमान हो गया इसके बाद गुरु की चरण पादुका की  पूजा आसा रामायण का पाठ गुरु गीता का पाठ महामृत्युंजय जाप के बाद सत्संग का आयोजन किया गया जिसके बाद विशाल भंडारे का आयोजन किया गया आश्रम के संचालक कन्हैया भाई ने बताया कि हर वर्ष की तरह इस बार भी  गुरु पूर्णिमा पर कार्यक्रम आयोजित किया गया उन्होंने कहा कि गुरु की पूजा करने से सब देवी देवताओं की पूजा  हो जाती है जिस के मुख में गुरु का मंत्र होता है उसके सारे देवी कार्य अपने आप आप सिद्ध हो जाते हैं गुरु का होना जीवन में बहुत जरूरी है क्योंकि गुरु ही शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। वही  लखनपुर प्राचीन किला  मंदिर में 1008 श्री पूर्णागिरी गुरु महाराज  के आश्रम में भक्तों की भीड़ रही। मंदिर के महंत शांतिगिरी महाराज ने बताया कि सबसे पहले गुरु मूर्ति को दूध गंगाजल  से  स्नान करवाया गया  वस्त्र पहनाए गए  पंडितों द्वारा विशेष मंत्र उच्चारण  कर  गुरु की पूजा की गई। जिसके बाद गुरु के शिष्यों ने गुरु की पूजा कर के गुरु को उपहार भेंट किए। जिसके बाद एक विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें सैकड़ों की तादाद में स्थानीय लोगों वा गुरु के शिष्यों ने प्रसाद ग्रहण किया। शांतिगिरी महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक  साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। शांति गिरी महाराज ने बताया गुरु पूर्णिमा  हमारे गुरुओं के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करने का दिन है। ये गुरु औपचारिक आध्यात्मिक शिक्षक, वंश धारक या कोई भी व्यक्ति हो सकते हैं, जो ज्ञान और बुद्धि प्रदान करते हैं, जो हमें हमारे जीवन पथ पर मार्गदर्शन करते हैं।

   

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