मसाने की होली गृहस्थों के लिए नहीं : खुशहाल भारती

वाराणसी, 5 मार्च (हि.स.)। मोक्षतीर्थ मणिकर्णिकाघाट पर रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन होने वाली मसाने की होली (चिता भस्म होली)को लेकर छिड़ा विवाद थम नहीं रहा। बुधवार को श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा उदयपुर शाखा के प्रभारी संत दिगंबर खुशहाल भारती ने कहा कि सोशल मीडिया के बहकावे में आकर नई पीढ़ी के काशीवासियों को कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए। मसाने की होली उनके लिए (गृहस्थों) नहीं है। इसे साधु-संतों-अघोरियों के लिए ही छोड़ दें। संत दिगंबर खुशहाल भारती मणिकर्णिका घाट स्थित अपने शिविर में बुधवार काे पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

उन्होंने नागरिकों को याद दिलाया कि काशी में गृहस्थ और संयासी दोनों बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलने की परम्परा अलग-अलग निभाते हैं। यहीं लोक परम्परा भी है। रंगभरी एकादशी की तिथि पर काशीवासी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत आवास पहुंचकर गौरी-शंकर-गणेश के साथ होली खेलते हैं। उसके अगले दिन महाश्मशान पर बाबा विश्वनाथ के साथ संन्यासियों की होली खेलने की परंपरा है। गृहस्थों को गलती से भी महाश्मशान की होली में सम्मिलित नहीं होना चाहिए। इससे बड़ा दोष पड़ता है।

उन्हाेंने कहा कि मेरा आग्रह है कि काशीवासी रंगभरी एकादशी के दिन महंत आवास पर शिव-पार्वती-गणेश के साथ होली खेलें। परंपरानुसार बाबा की पालकी महंत आवास से विश्वनाथ मंदिर तक लेकर जाएं। द्वादशी की तिथि पर साधु-सन्यासी मसान पर बाबा के साथ होली खेलेंगे। मैं एक बार पुनः कहना चाहता हूं कि काशी की शास्त्रीय और लोक परंपराओं का मूलरूप में निर्वाह करने का दायित्व काशीवासियों का ही है। शास्त्र और लोक के इस संतुलन के आधार पर ही काशी संपूर्ण विश्व में श्रेष्ठ है।

उन्होंने कहा कि काशीवासी बाबा विश्वनाथ से अपने विशेष संबंध का निर्वाह करते हुए जब उनके विवाह का उत्सव मनाते हैं तो लोकाचार भी करते हैं। तिलक, तेल हल्दी, विवाह के बाद गौना-विदाई करने की परंपरा काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत परिवार की अगुवाई में पिछले कई सौ वर्षों से काशी के गृहस्थ भक्त निभाते आ रहे हैं। यही काशी का गौरव है। काशी की विशिष्टता है। यह परंपरा आगे भी बनी रहे, इसका दायित्व काशीवासियों का है। हम नागा साधु बाबा के गण हैं। लेकिन काशीवासी तो सीधे-सीधे बाबा के ही दूत हैं। वे बाबा के दूत हैं इसीलिए वे काशी में हैं और हम सब गण है इसलिए हिमालय की कंदराओं में हैं। काशीवासी बनाने की भगवान शिव की विशेष कृपा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर कालचक्र हमें समय-समय पर देता रहता है। वर्तमान का सांस्कृतिक संक्रमण काल हमारी परंपराओं और मान्यताओं के सामने चुनौती बनकर खड़ा है। इसे स्वीकार करते हुए देवाधिदेव महादेव पर पूर्ण विश्वास रख कर प्रत्येक काशीवासी को अपना कर्तव्य निभाना होगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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