बांदा, 30 अक्टूबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड की धरती पर किसानों ने सहअस्तित्व आधारित जीवन शैली को अपनाने की दिशा में एक नई पहल की है। इसी क्रम में बांदा के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह की बगिया में गुरुवार को चार दिवसीय 27वां जीवन विद्या सम्मेलन शुरू हुआ। इस सम्मेलन का उद्देश्य खेती से लेकर सामाजिक जीवन तक प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर संतुलित जीवन शैली को समझना और अपनाना है।
उद्घाटन सत्र में मध्यस्थ दर्शन के प्रणेता ए. नागराज जी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। सम्मेलन के संयोजक किसान प्रेम सिंह ने देश और विदेश से आए प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज के दौर में प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन असंतुलन पैदा कर रहा है। ऐसे में किसान ही वह वर्ग हैं जो इस संकट से निपटने में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसानों की बहुलता ही भारत को आर्थिक मंदी से बचाए रखती है, क्योंकि यही वर्ग देश को खाद्यान्न की कमी नहीं होने देता। प्रेम सिंह ने जोर देकर कहा कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और किसानों को संवैधानिक संरक्षण देने से ही स्थायी विकास संभव है।
सम्मेलन का मुख्य विषय “आवर्तनशीलता ही परंपरा का आधार” रखा गया है। इस अवसर पर जीवन विद्या के प्रबोधक सोम त्यागी, श्याम कुमार, सौरभ और शिक्षाविद पूनम साहू ने आवर्तनशीलता के महत्व पर अपने विचार रखे। पूनम साहू ने कहा कि आवर्तनशीलता, मध्यस्थ दर्शन का व्यवहारिक स्वरूप है जो जीवन को संतुलित और समृद्ध बना सकती है। श्याम कुमार ने बताया कि प्रकृति में प्रत्येक जीव और वस्तु के अस्तित्व को स्वीकारना ही आवर्तनशीलता की जड़ है।
सम्मेलन में देश के विभिन्न राज्यों के किसान, सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ शामिल हुए हैं। इनमें पद्मश्री सम्मानित किसान भारत भूषण त्यागी, आगरा के चिकित्सक डॉ. सत्य प्रकाश आर्य, भारत सरकार के पूर्व सचिव बी.बी. सिंह और नेपाल के प्रगतिशील किसानों का प्रतिनिधिमंडल विशेष रूप से उपस्थित हैं।
चार दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में आवर्तनशील अर्थव्यवस्था, सहअस्तित्व आधारित मध्यस्थ दर्शन और सतत जीवन शैली पर विस्तृत चर्चा की जाएगी। यह आयोजन किसानों की उस सोच को दर्शाता है जो खेती को केवल जीविका नहीं, बल्कि जीवन दर्शन का आधार मानती है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अनिल सिंह



