काशी तमिल संगमम 3.0: तमिल किसानों ने बीएचयू में गेहूं की उन्नत किस्म में दिखाई रूचि

बीएचयू में तमिल किसानों के साथ बौद्धिक सत्र

—ऑर्गेनिक फार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियों को समझा, अनुभव भी साझा किया

— ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने को लेकर तमिल किसानों के साथ विमर्श

वाराणसी, 17 फरवरी (हि.स.)। काशी तमिल संगमम 3.0 में भाग लेने के लिए तमिलनाडु से आए किसानों और कारीगरों ने सोमवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर के साथ कृषि फार्म में दौरा किया। कृषि फार्म में कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. उदय प्रताप सिंह ने 210 सदस्यीय दल का स्वागत कर उन्हें कृषि के आधुनिकीकरण व उन्नयन के लिए चल रहे प्रयासों की जानकारी दी। इसके बाद किसानों ने मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन और पोषण आधारित फसल प्रणालियों की जानकारी ली। इसके बाद आयोजित बौद्धिक सत्र में किसानों ने पूरे उत्साह से भाग लिया।

बौद्धिक सत्र में कृषि और पारंपरिक हस्तकला में पारस्परिक ज्ञान साझा कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और मज़बूत बनाने पर विचार मंथन हुआ। तमिलनाडु के किसानों और हस्तकला कारीगरों ने आधुनिक कृषि तकनीकों, डेयरी उत्पादन और पोषण आधारित कृषि पद्धतियों के बारे में जानकारी ली। इसके साथ ही वर्मीकम्पोस्टिंग और जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियों पर विशेषज्ञों से बातचीत की।

परिसर स्थित पंडित ओंकारनाथ ठाकुर सभागार में आयोजित वैचारिक सत्र में ऑर्गेनिक फार्मिंग के विशेषज्ञ पद्मश्री चंद्रशेखर सिंह ने जैविक कृषि के बारे में जानकारी दी। उन्होंने तमिल किसानों से कहा कि काशी तमिल संगमम संस्कृति से लेकर कृषि तक उत्तर एवं दक्षिण के बीच ज्ञान साझा करने का एक सशक्त माध्यम बन गया है। उन्होंने कृषि को लाभकारी उद्यम बनाने तथा उच्च गुणवत्ता के फसल उत्पादन के लिए तकनीक व नवाचार के अधिक प्रयोग करने पर बल दिया। किसानों से संवाद में सवाल पूछे। कृषि विज्ञान संस्थान के प्रो. रघुरामन बीएचयू फार्म एडवाइजरी ऐप के बारे में जानकारी साझा की और गेहूं की उन्नत किस्म HUW 838 के बारे में बताया। किसानों ने उस उन्नत बीज को लेकर दिलचस्पी दिखाई।

प्रो. रघुरामन ने बताया कि इस ऐप को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया है। संस्थान में विकसित विभिन्न फसलों और प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि किसान इनका उपयोग करके दोहरा लाभ अर्जित कर रहे है।

बीएचयू दृश्य कला संकाय के डॉ सुरेश चंद्र जांगिड़ ने दल में शामिल कारीगरों को काशी की समृद्ध कला और शिल्प पर विस्तार से जानकारी दी। विशेष रूप से बनारसी रेशम बुनाई, गुलाबी मीनाकारी और पारंपरिक मूर्तिकला की बारिकियों को बताया। उन्होंने कहा कि कला, संगीत और साहित्य जीवन की आत्मा है और दृश्य कला संकाय इस दिशा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस सत्र में डीआईसी वाराणसी के प्रतिनिधि बलराम ने किसानों और कारीगरों को प्रोत्साहन व सहयोग देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की योजनाओं का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। सत्र में यूपी के किसान कैलाश नारायण सिंह ने नील क्रांति योजना और मत्स्य पालन पर अपने विचार साझा किए। डॉ. शशिकांत राय ने काले चावल की खेती, सुधीर सिंह ने शून्य बजट खेती, और अनिल कुमार सिंह ने कृषक उत्पादन संगठन, कैलाश नारायण सिंह ने मत्स्य पालन के क्षेत्र में चल रही योजनाओं को बताया।

विश्वकर्मा क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने अनानास के पत्तों से धागा उत्पादन, शिल्पकला क्षेत्र के आधुनिकीकरण, विदेशी बाजार पर निर्भरता को कम करने और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते प्रयासों की चर्चा की, ताकि 'विकसित भारत' के लक्ष्य को साकार किया जा सके। कार्यक्रम का समापन एक संवादात्मक सत्र के साथ हुआ, जिसमें तमिलनाडु के प्रतिनिधियों और स्थानीय विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किये।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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