देवोत्थानी एकादशी से जाग जाएंगे विष्णु भगवान, होने लगेंगे मांगलिक कार्य

—कष्टों को दूर करने के लिए देवउठनी के दिन सच्चे मन से विष्णु भगवान की करें उपासना

कानपुर, 11 नवंबर (हि.स.)। हिंदू धर्म में हर एकादशी को शुभ माना जाता है लेकिन देवोत्थानी (देवउठनी) एकादशी का विशेष महत्व है। इसके पीछे मान्यता है कि चातुर्मास यानी चार महींने तक योग निद्रा में रहने के बाद भगवान विष्णु निद्रा से बाहर आते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु सृष्टि की कमान अपने हाथों में ले लेते हैं और मांगलिक कार्य होने लगते हैं। यानी देवउठनी से शादी विवाह जैसे सभी शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं और गेस्ट हाउस, लॉन आदि वैवाहिक व्यवसाओं में बहार शुरू हो जाती है।

ज्योतिषाचार्य रागेश उद्धव शुक्ला ने सोमवार को बताया कि भगवान विष्णु चार माह तक योग निद्रा में रहते हैं जिसे 'चातुर्मास' कहा जाता है। यह चार महीने विशेष रूप से मांगलिक कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। यही कारण है कि इस दिन को विशेष रूप से विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। देवउठनी एकादशी का महत्व बाकी 24 एकादशी की तुलना में काफी ज्यादा है। हिंदू पंचांग के अनुसार देवउठनी एकादशी इस बार 12 नवंबर को है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की सच्चे मन से उपासना करता है। उसके जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति के जीवन में आ रही समस्याओं से भी उसको छुटकारा मिलता है। देवउठनी का दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। यह पर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मनाया जाता है। इस वर्ष देवउठनी एकादशी के दिन रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग रहेगा। इन योगों के संयोजन से इस दिन की पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है। यह योग धार्मिक कार्यों, पूजा और व्रत के लिए अत्यधिक लाभकारी होते हैं।

ऐसे करें पूजा

पंडित योगेश अवस्थी 'योगी जी महाराज' ने बताया कि देवउठनी एकादशी की पूजा विधि भी अत्यंत सरल और प्रभावशाली है। सबसे पहले इस दिन घर में स्नान करके शुद्ध होने का महत्व है। घर के आंगन या बालकनी में चौक बनाकर भगवान विष्णु के चरण अंकित करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं और शंख बजाकर उन्हें उठाएं। इस दौरान भगवान विष्णु के जागरण मंत्र का जाप करें 'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये, त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम'। पूजा के बाद भगवान को तिलक लगाकर श्रीफल अर्पित करें, गन्ना, सिंघाड़ा, मिठाई आदि का भोग लगाएं और पूजा की समाप्ति पर आरती करें। इस दिन विशेष रूप से तुलसी माता की पूजा की जाती है। तुलसी को लाल चुनरी, सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें और शालिग्राम के साथ विधिपूर्वक पूजा करें।

गेस्ट हाउस और रिसॉट फुल, दो माह में होंगी करीब पांच हजार शादियां

देवउठनी एकादशी यानी मंगलवार 12 नवंबर से शहर में शादियां शुरू हो जाएंगी और गेस्ट हाउस व रिसार्ट पहले से ही फुल हो चुके हैं। यही नहीं दिसंबर तक की सभी तिथियों में खाली नहीं है। योगी जी महाराज ने बताया कि नवंबर में 12, 13, 15, 16, 17, 18, 22, 23, 25, 28, 29 और दिसंबर माह में 4,6,9, और 10 दिसंबर को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं। कानपुर होटल, गेस्ट हाउस, स्वीट्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन के महामंत्री राजकुमार भगतानी ने बताया कि नवंबर—दिसंबर की सहालग के लिए सभी वैवाहिक स्थल फुल हो चुके हैं। टेंट पंडाल कारोबारी सुबोध चोपड़ा ने बताया कि इन दो महीनों में शहर में करीब पांच हजार से अधिक शादियां होने का अनुमान है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र शामिल नहीं है।

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हिन्दुस्थान समाचार / अजय सिंह

   

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