कानपुर, 12 नवंबर (हि.स.)। चार माह तक भगवान विष्णु विश्राम करने के बाद मंगलवार को निद्रा से जाग गए। उनके नींद से उठते ही चारों ओर मांगलिक कार्यों की गतिविधियों की शुरुआत भी होने लगी। देवोत्थानी एकादशी पर योगनिद्रा से जागे भगवान विष्णु के उठने के साथ जिन मांगलिक कार्यों की शुरुआत हुई, उसमें विवाह पहले नम्बर पर है। मंगलवार से ही लोगों के यहां मांगलिक कार्यों की शहनाई गूंजने लगी और तमाम तरह के मांगलिक कार्य आरंभ हो गए। इससे पूर्व घर में विधि विधान से पूजन अर्चन करने के साथ देव जगा दिए गए।
आचार्य रागेश उद्वव शुक्ला ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक चार महीने पूर्व देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। तब से चातुर्मास का आरंभ हो जाता है। इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। उसके बाद देवोत्थानी एकादशी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से भक्तों को सुख समृद्धि और वैभव का आशीर्वाद मिलता है। अब ये मांगलिक कार्य 14 दिसम्बर तक अनवरत जारी रहेंगे। इसके बाद खरमास की शुरुआत हो जाएगी। फिर संक्रान्ति के दिन फिर से मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो सकेगी। देवोत्थानी एकादशी के दिन को विशेष रूप से विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
देवोत्थानी एकादशी का महत्व बाकी 24 एकादशी की तुलना में काफी ज्यादा है। हिंदू पंचांग के अनुसार देवोत्थानी एकादशी इस बार मंगलवार से शुरू हो गयी है। मान्यता के अनुसार जो भक्त इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की सच्चे मन से उपासना करता है। उसके जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति के जीवन में आ रही समस्याओं से भी उसको छुटकारा मिलता है। देवोत्थानी का दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित माना जाता है। यह पर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मनाया जाता है। इस वर्ष देवोत्थानी एकादशी के दिन रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग रहा। इन योगों के संयोजन से इस दिन की पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है। यह योग धार्मिक कार्यों, पूजा और व्रत के लिए अत्यधिक लाभकारी होते हैं। देवोत्थानी एकादशी पर घरों पर पूजा अर्चना हुई और श्रद्धालुओं ने व्रत भी रखा।
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हिन्दुस्थान समाचार / अजय सिंह