वैवाहिक माैसम में चढ़ा डलिया काराेबार, ठगा महसूस कर रहे डलिया निर्माता

डलिया की बिक्री के लिए रखते कारोबारी अवधेश  फोटो

लखनऊ, 16 नवम्बर(हि.स.)। लखनऊ में शादी विवाह के मौसम में अचानक से डलिया की मांग बढ़ गई है। वैवाहिक कार्यक्रमों में सगुन के फल रखकर ले जाने के लिए सुंदरता से पूर्ण डलिया की खरीदारी हाे रही है। फल विक्रेता जहां फल की डलिया सजाते वक्त डलिया के मूल्य जहां 60 रुपये से साै रुपये तक ग्राहकाें से वसूल रहे हैं, वहीं डलिया बनाने वालाें काे लागत के बराबर या कुछ अधिक मूल्य मिल पा रहा है। इससे ग्राहकाें पर जहां भार पड़ रहा है, वहीं डलिया बनाने वाले भी खुद काे ठगा महसूस कर रहे हैं।

गांव से शहर तक डलिया में फलों को रखकर सगुन ले जाने की परम्परा अभी भी चल रही है। परम्परा को निभाते हुए बाजार में डलिया की खरीदारी करते हैं। डलिया पहले पांच रुपये में मिला करती थी। कुछ वर्षो के बाद पांच रुपये की डलिया का मूल्य पच्चीस रुपये हो गया है। दो किलो, पांच किलो, दस किलो, बीस किलो के दर से डलिया का मूल्य पच्चीस, पचास, साठ और सौ रुपये तक तय किया गया है।

मंडी मोहल्ला निवासी डलिया कारोबारी अवधेश बताते हैं कि रंग-बिरंगी पन्नियों में सजाकर बाजार में बिक्री को लायी जाने वाली डलिया को बांस या प्लास्टिक से तैयार किया जाता है। प्लास्टिक की डलिया फैक्टरी तो बांस की डलिया को हाथों से बनाया जाता है। डलिया के ऊपर लगने वाली पन्नियां, गोटा, वॉलपेपर, जाली के मूल्य में बहुत बढ़ोतरी न होने से डलिया का मूल्य न्यूनतम बढ़ोतरी के साथ ही लगाया जाता है।

उन्होंने बताया कि दो पीढ़ी से उनके यहां डलिया, दौरी, छपिया बनाने का काम होता आ रहा है। उनके घर में डलिया बनाने और सजाने का काम नई पीढ़ी सीखकर कर रही हैं। हाथ में हुनर है तो बाजार में हुनर को पसंद करने वाले लोग है। शहर में कई जगहों पर डलिया बेची जाती है। उनके यहां की डलिया की मजबूती की गांरटी है।

डलिया कारोबारी अजय ने कहा कि गोटेदार डलिया की मांग वैवाहिक कार्यक्रमों के दौरान बहुत रहती है। इसके लिए उनके यहां दिनरात डलिया बनायी जाती है। बाजार में मिलने वाली सजावटी चीजों से डलिया को सजाते है। डलिया में जाली लगाने से उसकी बिक्री बढ़ जाती है। जाली लगे होने से डलिया में रखे फलों को बांधने में आसानी रहती है।

उन्होंने कहा कि उनके घर की महिलाएं डलिया बनाने के काम से कुछ धन कमा लेती है। डलिया बनाने के खर्च और बिक्री में जो अंतर आता है। उस मुनाफे में वह अपने घर की महिलाओं को आधा हिस्सा देते है। महिलाएं इससे उत्साहित होकर खाली समय में सुंदर सुंदर डलिया बनाती है। वहीं डलिया उनके दुकान से लोगों को बेची जाती है।

सूक्ष्म लघु उद्योग के अंतर्गत आने वाले डलिया बनाने के कार्य के लिए प्रदेश सरकार प्रोत्साहित कर रही है। डलिया के काम को बढ़ाने के लिए बैंक से लोन की सुविधा उपलब्ध है। इसके लिए जिला उद्योग केन्द्र और जिलाधिकारी कार्यालय से हर सम्भव जानकारी दी जाती है।

हिन्दुस्थान समाचार / श.चन्द्र

   

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