पटाखों के सजने लगे बाजार, दामों में हुई बढ़ोत्तरी 

कानपुर, 28 अक्टूबर (हि.स.)। दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही पटाखों का बाजार सजने लगा है। हालांकि अभी तैयारियां चल रही हैं और कुछ जगहों पर पटाखे बिक भी रहे हैं, लेकिन अबकी बार दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके पीछे आतिशबाजों का कहना है कि आतिशबाजी के निर्माण में प्रयोग होने वाले मैटेरियल तांबा, एल्युमिनियम, सल्फर डाइआक्साइड, पोटेशियम नाइट्रेट और परक्लोरेट के दामों में जबरदस्त उछाल आ गया है। ऐसे में आतिशबाजी का सपना संजोए लोगों को जेब ढीली करनी पड़ेगी।

दीपावली पर्व पर इस बार महंगाई के चलते आसमानी पटाखों को छुड़ाने का सपना संजोने वालों को विचार करना पड़ेगा, क्योंकि दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। पटाखों के व्यवसाय में लम्बे समय से काम कर रहे आतिशबाज शेरु ने सोमवार को बताया कि वैसे तो हर साल आतिशबाजी के दामों में इजाफा होता है, लेकिन पिछले दो सालों में काफी ज्यादा बदलाव आया है। पिछले साल की तुलना में इस बार आतिशबाजी 30 से 40 प्रतिशत महंगी हो गई है। यानी कि जो पटाखा बीते साल 50 रुपए का था वह इस बार 70 से 80 रुपए का मिल रहा है। इसके अलावा अन्य आइटमों के भी दाम बढ़े है। इसके बावजूद लोग आतिशबाजी खरीदने में कोई कंजूसी नहीं करते। क्योंकि खुशी और उल्लास का यह त्योहार साल में एक बार आता है। जिसे सभी पूरी मन से मनाना चाहता है।

आतिशबाजों की कम हुई संख्या

स्थानीय स्तर पर आतिशबाजी निर्माण करने वालों की संख्या लगातार घटती जा रही है। इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारी राजू के मुताबिक वर्तमान में जो आतिशबाजी निर्माण का काम कर रहे हैं, वह वर्षों पुराने हैं। कुछ का निधन हो चुका है नया व्यक्ति इस काम को नहीं सीखना चाहता। इसलिए आतिशबाजी बनाने वालों की संख्या कम हो रही है।

बहुत तेज आवाज के पटाखे पहली पसंद

आतिशबाजी के शौकीन लोग ज्यादातर ऐसे पटाखों पसंद करते हैं, जिसकी आवाज बहुत तेज हो। इसी को ध्यान में रखते हुए आतिशबाजी बनाने वाले कारीगर पटाखों तैयार करते हैं। सैफी रसूल अराफात आतिशबाज के मुताबिक इस बार बाजार में सबसे तेज धमाका करने वाला पटाखा मुर्गा छाप सुतली बम है। इसकी कीमत पिछली बार 20 रुपए थी जो इस बार बढ़कर 40 रुपए के आसपास हो गये हैं। इसके अलावा छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर भी कम आवाज वाली आतिशबाजी तैयार की जा रही है।

ग्रीन पटाखों की बढ़ी मांग

बीते कई सालों से आतिशबाजी विक्रय का काम करने वाले कलीम आतिशबाज का कहना है कि अभी तक जो परंपरागत आतिशबाजी आती थी उससे वायु और ध्वनि प्रदूषण ज्यादा होता है। जिसे लेकर अब शासन-प्रशासन सहित आम जनता भी सचेत हो गई है। जिसकी वजह से ग्रीन पटाखों की मांग और निर्माण दोनों ही बढ़े हैं। जिले में कुल आतिशबाजी में ग्रीन पटाखों की मात्रा 20 प्रतिशत बढ़ी है। यह ग्रीन पटाखे 30 प्रतिशत तक प्रदूषण को कम करते हैं। इसकी वजह से पटाखा बनाने वाली कंपनियों ने भी अब ग्रीन पटाखों की सप्लाई बढ़ा दी है। आगे बताया कि पटाखे महंगे होने की नई-नई वजह जुड़ती जा रही हैं। सबसे पहले तो पटाखा बनने में जो सामग्री लगती है, वह आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही है वहीं उसमें प्रयोग की जाने वाली रद्दी भी काफी महंगी हो गई है। पटाखे के अंदर जो मसाला भरा जाता है वह मुंबई, दिल्ली, आगरा से आता है। यहां तक पहुंचने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / अजय सिंह

   

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