वनाग्नि नियंत्रण पर मॉक ड्रिल 13 को, एनडीएमए अधिकारियों ने परखी तैयारियां
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- Feb 11, 2025
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देहरादून, 11 फ़रवरी (हि.स.)। उत्तराखंड में वनाग्नि नियंत्रण पर प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में 13 फरवरी को मॉक ड्रिल आयोजित की जाएगी। इस पर मंगलवार को टेबल टॉप एक्सरसाइज की गई।
राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र में एनडीएमए के अधिकारियों ने विभिन्न जिलाधिकारियों व रेखीय विभागों के अधिकारियों के साथ चर्चा की। टेबल टॉप एक्सरसाइज में एनडीएमए के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) सैयद अता हसनैन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का टेन प्वाइंट एजेंडा आपदा जोखिम न्यूनीकरण का मूल मंत्र है और इन दस बिंदुओं पर काम कर लिया जाए तो आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि मॉक ड्रिल का उद्देश्य कमियों की पहचान करना है ताकि असल आपदा के समय कोई भी गैप्स न रहे। उन्होंने कहा कि अमेरिका के लॉस एजिल्स में वनाग्नि अब तक के इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में से एक है और इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि वनाग्नि कितना भयावह रूप ले सकती है। उन्होंने कहा कि वनाग्नि को गंभीरता से लेते हुए प्रभावी रणनीति पर काम करना होगा। उन्होंने 2014 में अल्मोड़ा में वनाग्नि नियंत्रण को लेकर प्रशासन के प्रयासों की सराहना की।
एनडीएमए के सीनियर कंसलटेंट और इस मॉक ड्रिल का नेतृत्व कर रहे कमांडेंट आदित्य कुमार ने आपदा प्रबंधन एक्ट पर प्रकाश डालते हुए आईआरएस प्रणाली के तहत विभिन्न विभागों के कर्तव्यों और दायित्वों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने मॉक ड्रिल को लेकर सभी जिलाधिकारियों तथा विभिन्न रेखीय विभागों के अधिकारियों को जरूरी दिशा निर्देश दिए और उनकी शंकाओं व समस्याओं का समाधान किया।
आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि यह मॉक ड्रिल समुदायों की सहभागिता की थीम पर केन्द्रित है। यह थीम बहुत प्रासंगिक है, क्योंकि किसी भी आपदा का प्रभावी तरीके से सामना करने में स्थानीय समुदाय की भागीदारी बहुत जरूरी है।
छह जनपदों में होगी मॉक ड्रिल
मॉक ड्रिल राज्य में वनाग्नि के दृष्टिकोण से सबसे अधिक प्रभावित छह जनपदों अल्मोड़ा, चम्पावत, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून के 16 स्थानों पर की जाएगी। मॉक ड्रिल का उद्देश्य विभिन्न रेखीय विभागों के बीच आपसी समन्वय का धरातल पर परीक्षण करना, विभिन्न संसाधनों का सर्वाेत्तम क्षमता के साथ प्रयोग करना, तकनीक का अधिक से अधिक प्रयोग करना, कमियों को चिन्हित करना ताकि जब वास्तविक आपदा घटित हो तो उसका प्रभावी तौर पर सामना किया जा सके और समुदायों की सहभागिता को सुनिश्चित करना है।
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हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pokhriyal