मूर्ति परिवार ने कहा, लिटरेचर फेस्टिवल्स की रानी है जेएलएफ
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- Feb 01, 2025
जयपुर, 1 फ़रवरी (हि.स.)। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 के तीसरे दिन प्रसिद्ध विचारकों, वक्ताओं और लेखकों ने जरूरी मुद्दों पर आधारित विभिन्न चर्चाओं में भाग लिया। जयपुर म्यूजिक स्टेज के मंच पर शानदार प्रस्तुतियों ने एक बार फिर दर्शकों का मनोरंजन किया। वहीं जयपुर बुक मार्क में प्रकाशन जगत से जुड़े लोगों के मिलने जुलने और संवाद का सिलसिला भी जारी रहा।
31 जनवरी को आखिरी सत्र में हॉलीवुड अभिनेता और व्हाइट हाउस के सहयोगी काल पेन ने भारतीय-अमेरिकी के रूप में अपने जीवन की कहानियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया था उन्होंने अपने जीवन के रोचक किस्से भी साझा किए—जैसे कि 'वैन वाइल्डर' के ऑडिशन में उन्हें एक ऐसे श्वेत अभिनेता से मुकाबला करना पड़ा, जिसने ब्राउनफेस मेकअप किया था। उन्होंने बताया, “एक डर था कि अगर हम अश्वेत कलाकारों का शो बनाएंगे, तो श्वेत लोग उसे नहीं देखेंगे, जबकि श्वेत कलाकारों के शो को सभी देखते हैं। लेकिन अब यह साफ हो गया है कि लोग सिर्फ अच्छी कहानियां देखना पसंद करते हैं, चाहे कलाकार का रंग कुछ भी हो।”
फेस्टिवल की तीसरी सुबह की शुरुआत नीलॉय अहसान के मधुर डागरवाणी ध्रुपद गायन से हुई, जिसमें उनका साथ उस्ताद इमामुद्दीन खान ने दिया। अहसान का यह प्रदर्शन 15वीं शताब्दी के संत स्वामी हरिदास की परंपरा पर आधारित था, जिसमें ध्रुपद को आत्मचेतना की आध्यात्मिक यात्रा के रूप में प्रस्तुत किया गया।
सुबह की मधुर संगीतमय प्रस्तुति के बाद, प्रसिद्ध लेखिका सुधा मूर्ति और उनकी बेटी अक्षता मूर्ति के बीच बातचीत का एक खास सत्र हुआ। अक्षता, जो एक व्यवसायी, फैशन डिज़ाइनर और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पत्नी हैं, उन्होंने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को लिटरेचर फेस्टिवल्स की रानी कहा। उन्होंने आगे जोड़ा, अम्मा इसे लिटरेचर फेस्टिवल्स की काशी कहेंगी।
माँ-बेटी की इस बातचीत में किताबों के प्रति उनके प्रेम, बचपन की कहानियों और पढ़ने के महत्व पर चर्चा हुई। अक्षता ने बताया कि कैसे उनके माता-पिता ने बचपन से ही सेवा और कर्तव्य की भावना को बढ़ावा दिया, जिसने उनके जीवन और सोच को आकार दिया। सुधा मूर्ति ने बताया कि ये मूल्य उनकी किताबों में भी गहराई से बसे हुए हैं।
मृत्यु और जीवन पर नोबेल विजेता वेंकी रामकृष्णन की रोचक चर्चा
मृत्यु का एहसास केवल मनुष्यों को होता है, ठीक वैसे ही जैसे अरबों रुपये कमाने की क्षमता भी केवल इंसानों के पास होती है। नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकी रामकृष्णन ने इस गंभीर विषय को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया और यह समझाया कि मृत्यु जीवन चक्र का एक आवश्यक हिस्सा है। उन्होंने कहा, “हर चीज की एक उम्र होती है—शहर खत्म हो सकते हैं, कंपनियां बंद हो सकती हैं, तो मनुष्य क्यों नहीं? एक अजीब विरोधाभास यह है कि जब हम जीवित होते हैं, तब भी हमारे शरीर की लाखों कोशिकाएं हर समय मर रही होती हैं, और यह हमारे विकास के लिए जरूरी होता है। लेकिन जब हम मरते हैं, तब भी हमारे ज्यादातर अंग जीवित होते हैं और इन्हें दान किया जा सकता है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि जो समाज लंबी उम्र तक जीते हैं, वहां जन्मदर घटती जाती है, जो एक स्वस्थ और संतुलित समाज के लिए आदर्श नहीं है।
साहित्य, विज्ञान और पुनर्जागरण पर स्टीफन ग्रीनब्लाट की चर्चा
मृत्यु के भय और अमरता की इच्छा के संदर्भ में, 'द होलबर्ग प्राइज़ इवेंट' के तहत सत्र में स्टीफन ग्रीनब्लाट ने विलियम डैलरिम्पल के साथ चर्चा की। ग्रीनब्लाट ने बताया कि कैसे सभ्यताओं के पतन के साथ कई महान साहित्यिक रचनाएं, विशेष रूप से रोमन साहित्य, हमेशा के लिए खो गईं। उन्होंने शक्ति, संरक्षण और लिखित शब्द के नाजुक संबंधों प्रकाश डालते हुए समझाया कि किस तरह यह एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि आज विज्ञान और साहित्य को अलग-अलग क्षेत्रों के रूप में देखा जाता है, लेकिन प्राचीन ग्रंथों में दोनों आपस में जुड़े हुए थे। उनके अनुसार, मानवता और विज्ञान को साथ मिलकर आधुनिक दुनिया को फिर से सोचना और आकार देना चाहिए। अपनी पुलित्जर पुरस्कार विजेता पुस्तक में, ग्रीनब्लाट तर्क देते हैं कि पुनर्जागरण के दौरान लुक्रेतियस की खोज ने दुनिया को बदल दिया। इस ग्रंथ ने मृत्यु को अपरिहार्य मानने और जीवन का अधिकतम उपयोग करने की सीख दी, बजाय इसके कि लोग मृत्यु के भय में ही डूबे रहें।
युद्ध संवाददाताओं का अनुभव और ‘स्टोन यार्ड डिवोशनल’ पर चर्चा
छह युद्ध संवाददाता, विश्लेषक, फोटोग्राफर और लेखक ‘फ्रंटलाइन’ सत्र का हिस्सा बने, जिसने फेस्टिवल में आए दर्शकों का ध्यान खींचा। 21वीं सदी के लगातार बदलते राजनीतिक माहौल और वैश्विक संघर्षों ने कभी न खत्म होने वाले युद्धों पर सवाल खड़े किए। पैनल के सदस्यों ने उन कहानियों पर चर्चा की, जिन्होंने उनके जीवन को बदल दिया।
लिंडसे हिल्सम, ग़ैथ अब्दुल-अहद और यारोस्लाव ट्रोफिमोव ने बताया कि उन्होंने रवांडा, इराक और यूक्रेन में एक संकट को अपनी आंखों के सामने आकार लेते देखा। क्रिस्टोफर डी बेलैग ने गाजा और अफगानिस्तान में पत्रकारों के काम और युद्ध के दौरान सांस्कृतिक धरोहरों के विनाश पर बात की।
विष्णु सोम ने कारगिल युद्ध को कवर करने के दौरान अपने खतरनाक अनुभव साझा किए—जब उनके आसपास गोले फट रहे थे, उनके कैमरा पर्सन के साथ वे एक टीवी टावर के गिरने की घटना के बीच डटे रहे, ताकि दुनिया को जीवंत तस्वीरें दिखा सकें।
एडवर्ड वोंग ने अपने पिता की चीन की लिबरेशन आर्मी में भूमिका और अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान में संघर्ष के बीच समानताओं पर बात की। पैनल के कई सदस्यों ने युद्ध और अशांति को अपने दरवाजे तक आते देखा है, जिससे पत्रकारिता और नैतिकता के बीच संतुलन बनाने की चुनौती भी सामने आई।
‘स्टोन यार्ड डिवोशनल’ पर चार्लोट वुड की चर्चा
बुकर्स 2024 की शॉर्टलिस्ट में शामिल चार्लोट वुड की किताब पर उनकी बातचीत अनीश गवांडे के साथ हुई। यह किताब एक ऐसी महिला की आंतरिक यात्रा को दर्शाती है, जो अपने शहर सिडनी और अपनी दुनिया से दूर होकर एक कैथोलिक कॉन्वेंट में रहने लगती है।
वुड ने बताया कि उनकी किताब उस मानसिकता को उजागर करती है, जहां एक आधुनिक महिला नन बनने का फैसला क्यों लेती है। यह निर्णय जलवायु संकट को लेकर समाज की उदासीनता के प्रति असंतोष से उपजा है। यह किताब महामारी, ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग और खुद वुड की कैंसर से जूझने की प्रक्रिया के दौरान लिखी गई। उन्होंने कहा कि वे उन लोगों के लिए लिखती हैं जो दुनिया के द्वारा झकझोर दिए गए हैं। उनका मानना है कि उनकी नायिका को स्थिरता और मौन का सामना करना पड़ता है—जो हमारे समय के कठिन कार्यों में से एक है।
कन्हैया लाल सेठिया पुरस्कार 2025 कवि बद्री नारायण काे
इस वर्ष का प्रतिष्ठित कन्हैया लाल सेठिया पुरस्कार हिंदी के प्रख्यात कवि बद्री नारायण को प्रदान किया गया। बद्री नारायण अपनी गहरी समाजशास्त्रीय दृष्टि, लोकधर्मी कविताओं और विचारोत्तेजक लेखन के लिए जाने जाते हैं। वे कविता के साथ-साथ अकादमिक और सार्वजनिक जीवन में भी सक्रिय हैं। उनके प्रशंसित कविता संग्रह तुमड़ी के शब्द के लिए उन्हें 2022 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।
कन्हैया लाल सेठिया राजस्थान के महान कवि, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक परिवर्तन और लोकभाषा की संवेदना से भरपूर थीं। 2016 में स्थापित इस पुरस्कार का उद्देश्य कविता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले साहित्यकारों को सम्मानित करना है।
इस अवसर पर पुरस्कृत कवि बद्री नारायण ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कवि और समाज सुधारक कन्हैया लाल सेठिया जी ने हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए काम किया, दलितों के लिए काम किया, स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। इस पुरस्कार के माध्यम से सेठिया जी से जुड़कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। यह पुरस्कार केवल एक पुरस्कार नहीं है, यह एक मिशन है और मैं इस मिशन का हिस्सा बनकर खुश हूँ।
इस विशेष अवसर पर टीमवर्क आर्ट्स के प्रबंध निदेशक संजॉय के. रॉय, फेस्टिवल की सह-निदेशक और पुरस्कार विजेता लेखिका नमिता गोखले, और कवि-आलोचक रंजीत होसकोटे ने बद्री नारायण की रचनात्मक यात्रा और उनके साहित्यिक योगदान को सराहा। कन्हैयालाल सेठिया ट्रस्ट से जयप्रकाश सेठिया ने अपने वक्तव्य में कवि बद्री नारायण को शुभकामनाएँ दीं।
फेस्टिवल का चौथा दिन कल फिर क्लार्क्स आमेर होटल के विशाल परिसर में आयोजित होगा, जहाँ एक बार फिर संवाद, चर्चा और बदलाव को प्रेरित करने वाली किताबें होंगी। कल के प्रमुख वक्ताओं में अमोल पालेकर, शशि थरूर, जॉन वैलियंट, मैट प्रेस्टन, अमिताभ कांत, हुमा कुरैशी, डेविड हेयर और एंड्रयू ओ'हेगन शामिल होंगे।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश