भद्रवाह परिसर में जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई

भद्रवाह, 17 मार्च (हि.स.)। जम्मू विश्वविद्यालय के भद्रवाह परिसर स्थित पर्वतीय पर्यावरण संस्थान (आईएमई) ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन, ग्रामीण आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी में विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों को हिमालयी क्षेत्र में ग्रामीण समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्र की गतिशीलता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक मंच प्रदान किया गया। संगोष्ठी में विभिन्न विभागों के शिक्षण संकाय, छात्रों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की उत्साहपूर्ण भागीदारी देखी गई जो पर्यावरणीय स्थिरता पर सार्थक चर्चाओं में भाग लेने के लिए उत्सुक थे।

अपने संदेश में भद्रवाह परिसर के रेक्टर प्रोफेसर राहुल गुप्ता ने संगोष्ठी के आयोजन के लिए पर्वतीय पर्यावरण संस्थान को बधाई दी और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जागरूकता, शोध और कार्रवाई योग्य समाधानों की बढ़ती आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण के लिए विचारों और रणनीतियों का आदान-प्रदान करने के लिए इस तरह के व्यावहारिक मंच की सुविधा प्रदान करने के लिए आयोजकों की सराहना की।

मुख्य अतिथि प्रो. अत्तर सिंह ने जलवायु परिवर्तन के ज्वलंत मुद्दों को संबोधित करने में शिक्षा और अनुसंधान की भूमिका को रेखांकित करते हुए एक प्रेरक भाषण दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों को स्थायी प्रथाओं को विकसित करने के लिए सहयोग करना चाहिए जो ग्रामीण समुदायों की आजीविका में सुधार करते हुए नाजुक पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा कर सकें।

मुख्य भाषण प्रो. मिलाप चंद शर्मा ने दिया जिन्होंने विकसित हो रहे जलवायु परिवर्तन पैटर्न और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर उनके हानिकारक प्रभाव के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की। उन्होंने पर्यावरणीय क्षरण को कम करने और पर्वतीय समुदायों की लचीलापन बढ़ाने के लिए अनुकूली रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

भूगोल विभाग के प्रभारी प्रमुख तथा संगोष्ठी के समन्वयक डॉ. छेरिंग तंडुप ने संगोष्ठी के विषयों का परिचय दिया जिसमें जलवायु परिवर्तन लचीलापन, ग्रामीण विकास तथा पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण जैसे प्रमुख विषयों का गहन अवलोकन प्रस्तुत किया गया। उन्होंने जलवायु संबंधी कमजोरियों को प्रभावी ढंग से दूर करने के लिए नीति निर्माताओं शोधकर्ताओं तथा सामुदायिक नेताओं के बीच सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया।

हिन्दुस्थान समाचार / रमेश गुप्ता

   

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