कानपुर,28 नवंबर (हि.स.)। खेती में रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि रक्षा रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से मिट्टी की सेहत खराब हो रही है, तथा गुणवत्ता युक्त उत्पाद भी नहीं मिल पा रहा है। इसलिए प्राकृतिक खेती अपनाना वर्तमान समय की मांग है, जिससे मिट्टी की सेहत में सुधार होगा एवं खेती की लागत में कमी आएगी तथा टिकाऊ खेती का सपना साकार होगा। यह जानकारी गुरुवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के शाकभाजी अनुभाग के सस्य विद डॉ राजीव ने दी।
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती का उद्देश्य सबके लिए सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है। इससे जैव विविधता को भी बढ़ावा मिलेगा। इस दिशा में डॉ राजीव द्वारा विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग में तीन फसल पद्धतियों जैसे : हरी खाद पत्ता गोभी लोबिया (गर्मी), लोबिया (खरीफ) मटर, तोरई तथा मूंग, टमाटर पर प्राकृतिक खेती का शोध किया जा रहा है। फसलों पर विभिन्न प्राकृतिक घटकों जैसे जीवामृत, गोबर की खाद, जीवामृत व जैविक मल्चिंग का संयुक्त प्रयोग तथा गोबर की खाद व जैविक मल्चिंग का संयुक्त प्रयोग को शत प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के तुलनात्मक अध्ययन किया जा रहा है।
डॉ राजीव ने बताया गया कि गत वर्ष के अध्ययन के अनुसार सब्जी फसलों में गोबर की खाद 20 टन प्रति हेक्टेयर व जैविक मल्चिंग 7.5 टन प्रति हेक्टेयर के संयुक्त प्रयास से सर्वाधिक पत्ता गोभी में 210.09 कुंतल, लोबिया (गर्मी फसल) में 89.28 कुंतल, लोबिया (खरीफ फसल) में 87.12 कुंतल, मटर में 82.12 कुंतल, तोरई में 168.02 कुंतल, मूंग में 9.10 कुंतल तथा टमाटर में 350.68 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त हुई तथा इस प्राकृतिक विधि से प्राप्त उपज रासायनिक उर्वरकों की पैदावार के लगभग बराबर रही।
उन्होंने बताया कि यह अध्ययन लगातार 3 साल तक किया जाएगा तथा 3 साल के परिणाम के आधार पर सब्जी आधारित फसल पद्धतियों के लिए प्राकृतिक खेती का आर्थिक विश्लेषण के उपरांत स्थानीय कृषि पारिस्थितिकी के अनुसार मॉडल विकसित होगा। डॉ राजीव ने कहा कि प्राकृतिक खेती के विस्तार के लिए केंद्र सरकार की कैबिनेट ने 25 नवंबर को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत देश में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन को मंजूरी दी है जिसका लक्ष्य एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित करना है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / रामबहादुर पाल