क्रूसिफरोस फसलों को कीटों से बचाने के लिए नया कीट पालन-अंडे देने का कक्ष पेटेंट प्रकाशित
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- Nov 18, 2024
गोरखपुर, 18 नवंबर (हि.स.)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सुशील कुमार और उनकी शोध छात्रा ताहिरा अंसारी ने क्रूसिफरोस फसलों जैसे गोभी और पत्ता गोभी को नुकसान पहुंचाने वाले डायमंड बैक मोथ (Plutella xylostella) जैसे कीटों के प्रभावी प्रबंधन के लिए एक अभिनव, टिकाऊ और लागत-प्रभावी कीट संवर्धन चैंबर कीट पालन-अंडे देने का कक्ष विकसित किया है। यह पेटेंट भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय में पंजीकृत और प्रकाशित किया गया है।
यह नया उपकरण कीटों को उभरने, संभोग करने और अंडे देने के लिए अनुकूल प्रजनन और पालन-पोषण का वातावरण प्रदान करता है। इसकी संरचना में लकड़ी का आधार, पतली लकड़ी की छड़ें, हल्का प्लास्टिक जाल और मलमल का कपड़ा उपयोग किया गया है। यह चैम्बर उपयोग में सरल, टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल है, जो अनुसंधान और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए आदर्श है।
विशेषताएं और उपयोगिता-
1. सार्वभौमिक उपयोगिता: यह चैम्बर कीट पालन, प्रजनन व्यवहार के अध्ययन और विभिन्न प्रयोगात्मक कार्यों में सहायक है।
2. आसान निर्माण: यह कम लागत पर आसानी से तैयार किया जा सकता है और आवश्यकता अनुसार छोटा या बड़ा बनाया जा सकता है।
3. हवादार और पारदर्शी डिजाइन: सफेद प्लास्टिक जाल और मलमल के कपड़े का उपयोग इसे हवादार और प्रकाश पारगम्य बनाता है।
4. परिवहन में आसान: इसकी हल्की संरचना इसे स्थानांतरित करने में सुविधाजनक बनाती है।
लाभ:
यह चैम्बर वैज्ञानिक अनुसंधान में कीटों के व्यवहार, विकास और प्रजनन का अध्ययन करने के लिए एक आदर्श उपकरण है।
यह बड़े पैमाने पर कीटों के लार्वा उत्पादन में मदद करता है, जो जैविक नियंत्रण के लिए उपयोगी है।
पारंपरिक तकनीकों की तुलना में यह प्रणाली समय, श्रम और लागत बचाने में मददगार है।
निष्कर्ष:
यह पेटेंट किया गया आविष्कार क्रूसिफरोस फसलों के प्रबंधन और कीट अनुसंधान के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है। इसकी सरल डिजाइन, लागत-प्रभाविता और पर्यावरण-अनुकूलता इसे उद्योग और शोध दोनों क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोगी बनाती है।
कुलपति ने दी बधाई, कहा कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि
इस उपलब्धि पर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने खुशी व्यक्त की और शोधकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि यह पेटेंट न केवल दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के लिए गर्व की बात है बल्कि यह कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। कीट प्रबंधन और जैविक नियंत्रण के क्षेत्र में यह नवाचार न केवल पर्यावरण-अनुकूल है, बल्कि लागत-प्रभावी भी है। मुझे विश्वास है कि यह आविष्कार वैज्ञानिक अनुसंधान और औद्योगिक प्रयोगों में एक नई दिशा प्रदान करेगा।”
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रिंस पाण्डेय