चट्टानों को तोड़कर मिट्टी बनाने की प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभाते हैं लाइकेन : डॉ. उप्रेती

नैनीताल, 03 अगस्त (हि.स.)। कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर के वनस्पति विज्ञान विभाग में शनिवार को अतिथि प्राध्यापक निदेशालय के सहयोग से ‘करंट सिनेरियो ऑफ लाइकेनोलॉजी इन इंडिया’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया। कार्यक्रम में एनबीआरआई लखनऊ के पूर्व निदेशक व प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. दलीप कुमार उप्रेती ने कहा कि लाइकेन बेहद छोटे जीव होते हैं, लेकिन प्रकृति में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।

डॉ. उप्रेती ने कहा कि लाइकेन न केवल मसाले और दवा के रूप में बल्कि अंतरिक्ष में भी उपयोगी होते हैं। विश्व के 15 प्रतिशत लाइकेन भारत में मिलते हैं और ये चट्टानों को तोड़कर मिट्टी बनाने की प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। लाइकेन की 160 प्रजातियां औषधीय रूप में प्रयुक्त होती हैं। उन्होंने बताया कि वन विभाग ने मुनस्यारी में लाइकेन गार्डन स्थापित किया है। उन्होंने कहा कि विश्व में लाइकेन की 20,000 प्रजातियां ज्ञात हैं, इनमें से 3029 प्रजातियां भारत में हैं और इनमें से 520 प्रजातियां स्थानिक हैं। देश में लाइकेन की 500 प्रजातियां औषधीय हैं, जिनमें से 160 प्रजातियां विशेष रूप से भारत में पाई जाती हैं।

उल्लेखनीय है कि डॉ. उप्रेती ने 150 नई लाइकेन प्रजातियों की खोज की हैं।

कार्यक्रम के दौरान वनस्पति विज्ञान विभाग में महिला कॉलेज की छात्रा रुचि जलाल ने पीएचडी की अंतिम मौखिक परीक्षा भी दी। रुचि ने अपना शोध कार्य डॉ. सरस्वती बिष्ट के निर्देशन में पूरा किया है।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी / वीरेन्द्र सिंह

   

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