नगांव (असम), 5 जनवरी (हि.स.)। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भोगाली उत्सव मनाने की घर-घर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इस कड़ी में नगांव जिलांतर्गत महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव की जन्मस्थली बटद्रवा के सत्र (मठ) के वैष्णव भक्तों ने पूरी सत्रीया परंपरा के साथ भोगली पर्व के लिए भेलाघर बनाने की तैयारी शुरू कर दी हैं।राज्यभर में 13 जनवरी को उरुका और 14 जनवरी को भोगाली बिहू उत्सव मनाया जाएगा।
राज्य के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग सांस्कृतिक परंपराओं के साथ माघ बिहू के स्वागत की तैयारियों हाे रही हैं। किसी ने भोगाली उत्सव की तैयारियों के तहत पीठा बनाना शुरू किया है तो किसी ने विभिन्न प्रकार का भेलाघर बनाना आरंभ किया है। असमिया जातीय संस्कृति के केंद्र स्वरूप बटद्रवा में भेलाघर बनाने के लिए दान इकट्ठा करने के लिए घर-घर जाने का एक पारंपरिक कार्यक्रम हरिध्वनि के माध्यम से शुरू हुआ है, जो गुरुजन की शुरू की गई सत्र संस्कृति की गौरवशाली विरासत और एक मांगलिक कार्यक्रम है। इसके तहत वैष्णव भक्त एकत्र होकर हरिध्वनि के साथ लोगों के घर-घर पहुंच रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहू असमिया संस्कृति का प्राण है। भोगालू बिहू अपने नाम के अनुरूप अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर खाने से है। मूलरूप से बिहू कृषि से संबंधित पर्व है। असम में तीन बिहू मनाया जाता है, भोगाली, रंगाली और कंगाली बिहू। देश के अन्य हिस्सों में जैसे मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल आदि नामों से मनाया जाता है। इस माैके पर धान के पुआल और बांस आदि से भेलाघर बनाया जाता है। जिसमें रात के समय सामूहिक भोज होता है, जिसे सुबह के समय स्नान के बाद पूरे विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना करने के बाद उसमें आग लगा दी जाती है।
हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द राय