प्रयागराज के सारस्वत परम्परा की महत्त्वपूर्ण देन थे, पं. प्रभात शास्त्री
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- Dec 31, 2024
प्रयागराज, 31 दिसम्बर (हि.स.)। प्रयागराज अपनी बौद्धिक सम्पदा को हज़ारों वर्षों से समेटे हुए हैं। वह धरोहर ऐसी है, जिसमे जीवन का प्रत्येक पक्ष समाहित है। यहां एक-से-बढ़कर एक विभूति रही हैं। उन्हीं में से एक थे, 'पं. प्रभात शास्त्री'। प्रयाग में गंगातट पर स्थित दारागंज में निवास करते हुए, पं. प्रभात शास्त्री जीवन पर्यन्त संस्कृत भाषा और साहित्य के संवर्द्धन में लगे रहे। उनका मौलिक लेखन, अनुवाद तथा सम्पादन कर्म उल्लेखनीय रहा। 'काव्यांग-कल्पद्रुम' के प्रणेता पं. शास्त्री 'मूलरामायणम्' (वाल्मीकि रामायण), 'संगीतमाधवम्', 'श्रीजानकीगीतम्', 'पाणिनि तथा संस्कृत के अन्य अल्पज्ञात कवियों की रचनाएं' इत्यादिक का सम्पादन कर, अपनी प्रशंस्य सम्पादनकला को रेखांकित किया था। उन्होंने 'गीत गिरीशम' का प्रभावकारी अनुवाद कर, अपनी संस्कृत-विद्वत्ता का बहुविध परिचय दिया था।
उपर्युक्त विचार देश के प्रख्यात संस्कृतवेत्ता, दारागंज, प्रयागराज-निवासी पं. प्रभात शास्त्री की पच्चीसवीं पुण्यतिथि के पूर्व-दिवस के अवसर 31 दिसम्बर को 'सर्जनपीठ', प्रयागराज की ओर से 'सारस्वत सदन', आलोपीबाग़, प्रयागराज से आयोजित आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद में विषय-प्रवर्तन एवं पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए, संयोजक एवं संचालक आचार्य पं. पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने प्रकट किया था।
आचार्य ने यह भी बताया कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. प्रभात शास्त्री-द्वारा सम्पादित कृति 'राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन व्यक्ति और संस्था' का प्रकाशन सम्मेलन की ओर से किया गया था।
संस्कृत-विद्वान् डॉ. रहसबिहारी द्विवेदी ने बताया, मेरे पिताश्री ज्योतिषाचार्य पं. रामाभिलाष द्विवेदी प्रभात के मित्र थे। मैं पिता के साथ दारागंज-स्थित उनके निवास स्थान पर जाया करता था और प्रभात से श्लोक-रचना सीखता था। उन्होंने रागकाव्यों की जितनी भूमिकाएं लिखी थीं, उनका संग्रह कर, 'रागकाव्य विमर्श:' का प्रकाशन हुआ था, जिसकी भूमिका मैने लिखी थी। उनकी शैली में अद्भुत शास्त्रीयता थी।
प्रभात शास्त्री के सुपुत्र एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संरक्षक विभूति मिश्र ने बताया, मैं बाबू जी को बचपन से देखता रहा। उनकी संस्कृत-भाषा के प्रति निष्ठा देखते ही बनती थी। वे धारा-प्रवाह संस्कृत-सम्भाषण करने में दक्ष थे। वे वेद-वेदान्त तथा अन्यान्य शास्त्र-पुराणों के अनुवाद करने और संस्कृत-भाषा मे किसी भी विषय पर शास्त्रार्थ करने मे सिद्धहस्त थे।
पं. प्रभात शास्त्री के पौत्र एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के प्रधानमन्त्री कुन्तक मिश्र ने कहा, पं. शास्त्री का स्मरण करते ही हमारे सम्मुख संस्कृत-भाषा और साहित्य की शास्त्रीयता प्रकट होने लगती है। ओजस्विता के साथ संस्कृत मे धाराप्रवाह संवाद करनेवाले पं. प्रभात शास्त्री पाण्डित्य के संवाहक थे। यही कारण है कि उनकी विद्वत्ता अपराजेय रही।
हिन्दुस्थान समाचार / दीपक