अजमेर, 19 जनवरी(हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक सदी की परंपरा के उत्सव के तहत रविवार को भव्य पथ संचलन का आयोजन किया गया। इस संचलन में 20 घोषों की मधुर धुनों पर करीब पांच हजार स्वयंसेवकों ने कदम से कदम मिलाए। कार्यक्रम की शुरुआत तोपदड़ा स्थित खेल मैदान से हुई, जहां पहले बौद्धिक सत्र का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचारक निम्बाराम ने कहा कि आज देश में भ्रम फैलाया जा रहा है कि संघ एंटी मुस्लिम है, जबकि संघ में सनातन संस्कृति में आस्था रखने वाले स्वयंसेवक सक्रिय है। सनातन संस्कृति में सभी धर्मों के लोगों का मान सम्मान होता है। ऐसे में संघ एंटी मुस्लिम हो ही नहीं सकता। लेकिन संघ हिंदुत्व का समर्थक है। जब हम हिंदू राष्ट्र की बात कहते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि देश में सिर्फ हिंदू ही रहेंगे। असल में हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है। जिसमें सभी धर्मों के लोगों का सम्मान होता है। हिंदू कभी भी दूसरे धर्म के लोगों पर आक्रमण नहीं करता।
उन्होंने मौजूदा हालातों में चार तरह की सोच वाले हिंदू बताए। एक जो स्वयं को हिंदू होने पर गर्व करता है। दो हिंदू तो है, लेकिन हिन्दू होने का गर्व नहीं। तीन धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाला। तीसरी सोच वाला हिंदू समाज के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। ऐसे लोग धर्मनिरपेक्षता की आड़ में भारत की सनातन संस्कृति को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। चौथे नंबर पर वे हिंदू आते हैं जिन्हें अपने बारे में कोई जानकारी नहीं होती। ऐसे हिंदुओं के पास न तो अपना घर है और न ही अपना मंदिर। ऐसे हिंदू घुमंतू प्रवृत्ति के होते हैं। संघ ने पिछले कुछ वर्षों में इन घूमंतु हिन्दुओं को एकजुट करने का काम किया है और उन्हें उनके वंश की जानकारी भी उपलब्ध करवाई है। यही वजह है कि आज ऐसे घुमंतू स्वयं को हिंदू होने पर गर्व महसूस करते हैं। अकेले राजस्थान में 14 आवासीय छात्रावास चल रहे हैं, जिनमें घुमंतू जातियों के परिवारों के बच्चे पढ़ाई कर रहे है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1925 में जब डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी, तब देश विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहा था। तब यह माना गया कि हेडगेवार के बाद संघ समाप्त हो जाएगा, लेकिन हेडगेवार के बाद जिन लोगों ने संघ की कमान संभाली उसका परिणाम देश के सामने है। संघ के हिंदू समाज को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यही वह है कि आज हिंदू समाज के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। उन्होंने कहा कि जब लक्ष्य पास होता है तो काम की गति को और बढ़ाने की जरुरत होती है। जिस प्रकार एक धावक शुरू के चक्र में धीमी गति से दौड़ता है लेकिन जब अंतिम चक्र आता है तो दौड़ की गति को तेज करता है। ताकि जीत का लक्ष्य हासिल हो सके। उन्होंने कहा कि हम हिंदू समाज को एकजुट करने की बात अपने घर से ही शुरू करेे। इसके लिए उन्होंने पर्यावरण, सामाजिक समरसता, नागरिक कर्तव्य और कुटुम्ब विचार पर जो दिया। निंबाराम ने कहा कि अगले वर्ष जब हम सौ साल पूरे करेंगे, तब स्वयंसेवकों को भी तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वयं सेवकों की संख्या बढ़ाने के साथ साथ शाखाओं के विस्तार पर भी जोर दिया। हर बस्ती में संघ की शाखा लगनी चाहिए।
अंबेडकर भी प्रशंसक रहे
निम्बाराम ने कहा कि बीआर अंबेडकर भी संघ की कार्यप्रणाली के प्रशंसक रहे हैं। एक बार मुंबई में पांच सौ स्वयंसेवकों के बीच डॉ. हेडगेवार के साथ अंबेडकर भी मौजूद थे। अंबेडकर ने स्वयंसेवकों से पूछा कि कितने स्वयंसेवक अस्पृशीय (पिछड़ी जाति) है, तो एक भी स्वयंसेवक ने हाथ नहीं उठाया। लेकिन जब जाति के बारे में पूछा गया तो स्वयंसेवकों ने जानकारी दी। इस पर अंबेडकर ने कहा कि एक दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाकई हिंदू समाज को एकजुट कर लेगा। उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य सिर्फ हिंदू समाज को संगठित करना है। इतिहास गवाह है कि जब अंबेडकर ने मुंबई से चुनाव लड़ा तो समर्थन में संघ के कार्यकर्ता खड़े थे। आज जो लोग भारत में इंडिया स्टेट की तलाश कर रहे है उन्होंने अंबेडकर को हराने का काम किया। क्षेत्र प्रचारक के पबोधन के समारोह में सामाजिक कार्यकर्ता शीतल शेखावत मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थी। पथ संचलन के दौरान शहरवासियों ने जगह-जगह पुष्पवर्षा कर स्वयंसेवकों का स्वागत किया। संचलन मार्ग पर विभिन्न समाजों की ओर से जीवंत झांकियां प्रदर्शित की गईं, जो सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता का प्रतीक रहीं। शताब्दी वर्ष में निकला पथ संचलन पंच परिवर्तन, सामूहिक समरता, स्वदेश, कुटुम्ब प्रबोधन, नागरिक शिष्टाचार और पर्यावरण को लेकर काम करने की प्रेरणा व संदेश दे गया। पथसंचलन में 11 नगरों के 500 घोष वादक सहित हजारों स्वयं सेवक शामिल हुए।
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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष