सिरसा: विभाजन की स्मृतियां केवल अतीत की त्रासदी नहीं, सजग रहने की चेतावनी: प्रो. अग्रिहोत्री

सिरसा, 11 अगस्त (हि.स.)। हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि भारत का इतिहास केवल संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान का ही इतिहास नहीं है, बल्कि यह बाहरी आक्रमणों और उनसे हुई क्षति का भी इतिहास है। लगभग एक हजार वर्षों तक भारत की धरती बार-बार विदेशी आक्रांताओं का सामना करती रही। प्रो. अग्रिहोत्री सोमवार को सिरसा के सीडीएलयू में आयोजित विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि आठवींं सदी में अरब आक्रमणकारी सिंध तक पहुंचे, 11वीं सदी में महमूद गजनवी ने 17 बार भारत पर हमला कर हमारे मंदिरों, शिक्षा केंद्रों और सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट किया। 12वीं सदी में मोहम्मद गौरी ने तराइन की लड़ाई के माध्यम से राजनीतिक पराधीनता की नींव रखी। इसके बाद तुर्क, खिलजी, तुगलक, लोदी और अंतत: मुगल साम्राज्य ने यहां सत्ता स्थापित की। 18वीं सदी में जब मुग़ल साम्राज्य कमजोर हुआ तो यूरोपीय शक्तियों विशेषकर अंग्रेजों ने भारत की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संरचना को गहराई से प्रभावित किया। इन लंबे आक्रमणों ने न केवल हमारी स्वाधीनता छीनी, बल्कि समाज को विभाजित करने के प्रयास भी किए। 1947 का विभाजन इन आक्रमणों और विदेशी षड्यंत्रों की सबसे भीषण परिणति थी, जिसने लाखों लोगों को विस्थापित किया, लाखों की जान ली और सदियों पुराने रिश्तों को तोड़ दिया।

सीडीएलयू के कुलपति प्रो. विजय कुमार ने कहा कि विभाजन की पीड़ा को याद रखना आवश्यक है ताकि हम आपसी भाईचारे, सौहार्द और राष्ट्रीय एकता को मजबूत कर सकें। यह दिन हमें अतीत की त्रासदी से सीख लेकर एक बेहतर और एकजुट भारत के निर्माण का संकल्प दिलाता है। उस दौर में लाखों लोगों ने अपने घर, अपनी जमीन और अपने रिश्तेदार खो दिए, लेकिन उन्होंने अपने हौसले और देशभक्ति को नहीं खोया। आज हमें उसी भावना को आगे बढ़ाना है। इस अवसर पर एमबीए विभाग के प्राध्यापकों द्वारा सिरसा के विभाजन विभीषिका से प्रभावित परिवारों पर आधारित डॉक्यूमेंट्री का मंचन भी किया गया।

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हिन्दुस्थान समाचार / Dinesh Chand Sharma

   

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