शंकराचार्य ब्रह्मानन्द सरस्वती ने गुरु परम्परा को पुनर्जीवित किया : शंकराचार्य वासुदेवानन्द

प्रयागराज, 19 अगस्त (हि.स.)। श्रीमज्ज्योतिष्पीठ के पीठाधीश्वर के रूप में पीठोद्धारक ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती महाराज को 1941 में देश के विद्वान संतों, तपस्वियों, राजाओं, महाराजाओं ने मिलकर पीठासीन किया। उन्होंने पीठासीन होने पर सनातन धर्म की रीढ़ गुरु परम्परा को पुनर्जीवित किया और वेद एवं शास्त्रों के प्रचार-प्रसार के लिये कठिन परिश्रम करके जन सामान्य तक पहुंचाया।

उक्त विचार आज श्रावणी पूर्णिमा पर श्रीशंकराचार्य आश्रम ब्रह्मनिवास अलोपीबाग में चातुर्मास कर रहे जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवादन्द सरस्वती महाराज ने रूद्राभिषेक सम्पन्न होने पर व्यक्त किया। शंकराचार्य वासुदेवानंद महाराज ने बताया कि भगवान आदिशंकराचार्यजी महाराज ने ज्योतिष्पीठ, शारदापीठ, श्रृंगेरीपीठ और गोवर्धनपीठ की स्थापना किया और हर एक पीठ में एक-एक विद्वान प्रमुख के रूप में आचार्य बनाकर वेद आदि के प्रचार-प्रसार के लिये नामित किया। उन्होंने बताया कि 1941 के पहले 165 वर्षों तक ज्योतिष्पीठ प्राकृतिक एवं क्षेत्रीय बाधाओं के कारण सुचालित नहीं हो पाया था। स्वामीजी ज्ञानी एवं तपस्वी संत होने के कारण सनातन धर्मियों में नई चेतना जागृत किया।

ज्योतिष्पीठ के प्रवक्ता ओंकार नाथ त्रिपाठी ने बताया कि कार्यक्रम में श्रीमज्ज्योतिष्पीठ संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य पं0 शिवार्चन उपाध्याय, दण्डी स्वामी विनोदानन्द, दण्डी स्वामी अद्वैतानन्द, आचार्य छोटे लाल, आचार्य विपिन मिश्र, आचार्य अभिषेक मिश्र, आचार्य मनीष मिश्र सहित विभिन्न प्रान्तों के जिलों से आये हुये श्र्रद्धालु व भक्तों ने भी मन्दिर में स्थापित भगवान राधामाधव, हनुमान जी, गणेश भगवान सहित भगवान आदिजगद्गुरू शंकराचार्य एवं पूज्य पीठोद्धारक स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती की पूजा-आरती की।

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र / राजेश

   

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