हिसार : एचएयू ने विकसित की ज्वार की सीएसवी 64 एफ किस्म

ज्वार की सीएसवी 64एफ एक कटाई व अधिक मिठास वाली किस्म : प्रो. बीआर कम्बोज

हिसार, 23 अप्रैल (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के चारा अनुभाग ने ज्वार

की उन्नत किस्म सीएसवी 64एफ विकसित की है। चारा अनुभाग अब तक ज्वार की 13 किस्में विकसित

कर चुका है।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने बुधवार काे वैज्ञानिकों की सराहना करते

हुए कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित उन्नत किस्मों व तकनीकों के

कारण प्रदेश का देश के खाद्यान व चारा उत्पादन में अहम योगदान है। कुलपति ने बताया

कि हकृवि के चारा अनुभाग द्वारा विकसित ज्वार की सीएसवी 64एफ एक कटाई वाली, पत्तेदार,

मीठी व रसदार किस्म है जिसे पशु अधिक चाव से खाते हैं। उल्लेखनीय है कि ज्वार पर उत्कृष्ट

कार्य करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय श्रीअन्न अनुसंधान संस्थान से

2021-22 व 2022-23 में सर्वश्रेष्ठ ज्वार अनुसंधान केन्द्र का अवार्ड भी मिल चुका है।

सीएसवी 64एफ को विकसित करने में इन वैज्ञानिकों का रहा योगदान

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग के अनुसार ज्वार की सीएसवी

64एफ किस्म को विकसित करने में इस विभाग के चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों डॉ. पम्मी कुमारी,

डॉ. एसके पाहुजा, डॉ. जीएस दहिया एवं डॉ. डीएस फोगाट, डॉ. सतपाल, डॉ. नीरज खरोड़, डॉ.

बजरंग लाल शर्मा एवं डॉ. मनजीत सिंह की टीम की मेहनत रंग लाई है। अनुसंधान निदेशक ने

बताया कि ज्वार की इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के

चारा अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है। एचएयू में विकसित ज्वार की इस किस्म को उत्तरी

राज्यों मुख्यत: हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड एवं गुजरात में

उगाने के लिए सिफारिश की गई है।

सीएसवी 64एफ में अन्य किस्मों के मुकाबले 32 प्रतिशत अधिक मिठास

चारे वाली ज्वार की सीएसवी 64एफ किस्म एक कटाई के लिए उपयुक्त है। इस किस्म

में अन्य किस्मों की तुलना में मिठास अधिक है, जिसकी वजह से पशु इसे अधिक पंसद करते

हैं व चाव से खाते हैं। इस किस्म में मिठास अन्य किस्मों के मुकाबले 31.9 प्रतिशत तक

अधिक है। मिठास व प्रोटीन की अधिक मात्रा के कारण इस किस्म की गुणवत्ता और भी बढ़ जाती

है। ज्वार में प्राकृतिक तौर पर पाया जाने वाला विषैला तत्व धूरिन इस किस्म में बहुत

ही कम है। इस किस्म में धूरिन 67 पीपीएम है। सिफारिश किए गए उचित खाद व सिंचाई प्रबंधन

के अनुसार यह किस्म अधिक पैदावार देने में सक्षम है। सीएसवी 64एफ किस्म गोभ छेदक मक्खी व तना छेदक कीट के प्रति

प्रतिरोधी है व इसमें पत्तों पर लगने वाले रोग भी नहीं लगते। वैज्ञानिकों के अनुसार

चारा उत्पादन, पौष्टिकता एवं रोग प्रतिरोधकता की दृष्टि से यह एक उत्तम किस्म है। इस

किस्म की हरे चारे की औसत पैदावार 466 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व सूखे चारे की पैदावार

122 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इस किस्म की सूखे चारे की पैदावार उत्तरी राज्यों के

लिए ज्वार की अन्य बेहतर किस्म सीएसवी 35 एफ से 6.9 प्रतिशत अधिक है।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर

   

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