सुब्रमण्यम भारती चेयर तमिल अध्ययन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही:आरएन रवि
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- Feb 21, 2025
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—काशी तमिल संगमम में शामिल हुए तमिलनाडु के राज्यपाल,पुस्तकों का किया विमोचन
—राज्यपाल ने काशी और तमिलनाडु के ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक संबंधों को बताया
वाराणसी, 21 फरवरी (हि.स.)। काशी तमिल संगमम के तीसरे संस्करण में शुक्रवार को तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि ने भी पूरे उत्साह के साथ भागीदारी की। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पं. ओंकारनाथ ठाकुर सभागार में आयोजित अकादमिक सत्र में राज्यपाल ने उत्तर भारतीय छात्रों की तमिल भाषा में बढ़ती रुचि और बीएचयू में तमिल डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में बढ़ते नामांकन पर खुशी जताई। राज्यपाल ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्थापित सुब्रमण्यम भारती चेयर तमिल अध्ययन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस सत्र में राज्यपाल ने कई पुस्तकों का विमोचन किया, जिसमें प्रो. टी. जगदीश और उनके शोधार्थियों के अनुवादित 10 बाल पुस्तकों का हिंदी संस्करण,काशी कुंभाभिषेकम (लेखक – सुब्बू सुंदरम और उनकी पत्नी) शामिल रहीं। इस अवसर पर राज्यपाल ने काशी और तमिलनाडु के ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक संबंधों का खास तौर पर उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 1801 से पहले प्रति वर्ष 50,000 से अधिक तीर्थयात्री रामेश्वरम से काशी की यात्रा करते थे। उन्होंने बताया कि काशी विश्वनाथ मंदिर का कुंभाभिषेक 239 वर्षों बाद संपन्न हुआ। राज्यपाल ने कहा कि ब्रिटिश शासन ने उत्तर और दक्षिण भारत के बीच कृत्रिम विभाजन पैदा किया था। उन्होंने संत तुलसीदास, उनके गुरु रामानंद और उनके गुरु रामानुजाचार्य का उल्लेख किया, जिन्होंने भक्ति आंदोलन के माध्यम से उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने का कार्य किया। राज्यपाल ने भारत को एक जीवंत सभ्यता बताते हुए कहा कि यहाँ 'एक राष्ट्र, एक परिवार' की अवधारणा सदियों से जीवित है। उन्होंने कहा कि भारत के विकास लक्ष्यों की प्राप्ति महिलाओं को सशक्त किए बिना संभव नहीं है। उन्होंने महिला नेतृत्व में बढ़ती स्टार्टअप्स और मुद्रा योजना एवं जन धन योजना जैसी सरकारी पहलों के माध्यम से महिला उद्यमियों को मिले समर्थन की सराहना की। कार्यक्रम में बीएचयू के कार्यवाहक कुलपति प्रो. संजय कुमार ने विश्वविद्यालय को लघु भारत बताया। कुलपति ने काशी तमिल संगमम 3 को तमिलनाडु और काशी के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक संबंधों का उत्सव बताते हुए 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की परिकल्पना को मजबूत करने पर जोर दिया। उन्होंने आदि शंकराचार्य के योगदान का खासतौर पर उल्लेख किया। सत्र में काशी तमिल संगमम पर एक वृत्तचित्र दिखाया गया, जिसमें दोनों क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासत और महिलाओं के सशक्तीकरण से जुड़े सरकारी प्रयासों को प्रदर्शित किया गया।
इसके पहले कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय गान और बीएचयू कुलगीत से हुई। कला संकाय के विद्यार्थियों ने इसे प्रस्तुत किया। अन्य मंचासीन अतिथियों में बीएचयू समाजशास्त्र विभाग की प्रो. श्वेता प्रसाद, महिला अध्ययन केंद्र, बीएचयू की प्रो. मीनाक्षी झा रही।
—सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रेरणादायक कहानियां साझा की गईं
सत्र के इंटरैक्टिव सत्र में महिला उद्यमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रेरणादायक कहानियां साझा की गईं। उत्तर प्रदेश के श्रवण कुमार ने लखपति दीदी योजना पर चर्चा की, जबकि मंगलपुर की आलम आरा ने बताया कि उनके आलम स्वयं सहायता समूह ने 600 से अधिक बैंक खाते खोले हैं और 60 अटल पेंशन योजना नामांकन कराए हैं। अमित कुमार ने मुद्रा लोन के लाभों पर चर्चा की, और कौशल जहां ने सिल्क साड़ी उद्यमिता की सफलता पर प्रकाश डाला। वेलफेयर ट्रस्ट के रवि मिश्रा ने ग्रीन आर्मी संगठन का परिचय दिया, जो 260 गांवों में दहेज, नशाखोरी और अंधविश्वास के खिलाफ कार्य कर रहा है और 2200 से अधिक महिलाओं को आत्मरक्षा और कराटे में प्रशिक्षित कर चुका है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्रीन आर्मी के बनाए गए जूते पहनते हैं।
—तमिलनाडु की पहली महिला विधायक डॉ. मुत्थुलक्ष्मी रेड्डी के योगदान की चर्चा
अकादमिक सत्र में महिला अध्ययन केंद्र, बीएचयू की प्रो. मीनाक्षी झा ने काशी तमिल संगमम में संस्कृति, परंपरा और ज्ञान के संगम का जिक्र किया। उन्होंने तमिलनाडु की पहली महिला विधायक डॉ. मुत्थुलक्ष्मी रेड्डी के योगदान को रेखांकित किया, जिन्होंने महिला अधिकारों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रो. श्वेता प्रसाद ने सतत विकास लक्ष्य (SDGs), लैंगिक समानता, और नारी शक्ति वंदन अधिनियम, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मिशन शक्ति जैसी योजनाओं पर चर्चा की, जिन्होंने भारत में महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार किया और लिंगानुपात में सुधार किया। कार्यक्रम का समापन डॉ. शन्मुग सुंदरम (वाणिज्य संकाय, बीएचयू) के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी