स्थापित ज्योतिष्पीठ का स्वामी ब्रह्मानंद ने किया पुनरूद्धारः वासुदेवानंद सरस्वती 

प्रयागराज, 10 दिसम्बर (हि.स.)। श्रीब्रह्म निवास भगवान आदिशंकराचार्य मंदिर में आयोजित नौ दिवसीय आराधना महोत्सव में जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज ने जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वत के पाटोत्सव कार्यक्रम में पीठोद्धारक शंकराचार्य की पूजा आरती किया।

इसके उपरान्त उन्होंने बताया कि संवत 2631 में दक्षिण भारत में केरल देश के अन्तर्गत कालड़ी ग्राम में वैदिक निम्बूदरी ब्राह्मण कुल में आचार्य शंकर का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम शिवगुरू और माता का नाम विशिष्टा सरस्वती था। श्री शंकराचार्य भगवान शंकर के अवतार थे। सनातन वैदिक धर्म की रक्षा व प्रचार करते हुए भगवान आदिशंकराचार्य ने ज्योति, शारदा, श्रृंगेरी और गोवर्धन नाम के चार पीठों की स्थापना किया। इन चारों पीठों का एक-एक आचार्य प्रमुख बना दिया।

शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने बताया कि संवत 1833 से संवत 1998 तक (165 वर्ष तक) उत्तराम्नाय का धर्मपीठ-ज्योतिष्पीठ आचार्य विहीन दशा में राजनैतिक व दैवी प्रकोप आदि कारणों से उच्छिन्न पड़ा रहा। बाद में सन् 1908 में श्रीनगर, काश्मीर, मेवाड़, नेपाल, टिहरी के राजाओं एवं प्रमुख संत महात्माओं विद्वानों ने 1910 ई0 में गढ़वाल के कलेक्टर के सहयोग से मठ के निर्माण के लिए भूमि खरीद कर एक विद्वान चरित्रवान, विवेकशील, ज्ञान वृहद, वेदशास्त्रों को मानने वाले जगद्गुरू शंकराचार्य पीठ पर पीठासीन किया। यही संत श्रीमज्ज्योतिष्पीठोद्धारक जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के नाम विराजमान होकर ज्योतिष्पीठ के उद्धार, विकास व सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार करने के लिए आजीवन लगे रहे। इन्हीं की परम्परा में इनके ही वसीयत के आधार पर जगद्गुरू शंकराचार्य के नाम पर शान्तानंद सरस्वती, उनके बाद स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती और उनके बाद मैं स्वयं (पूज्य शंकराचार्य) ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ज्योतिष्पीठाधीश्वर नाम पद पर पीठासीन हुये। मैं आज भी हूँ और भविष्य में भी सनातन सेवा करता रहूँगा। इस अवसर पर व्यास ओम नारायण तिवारी ने संगीत एवं भजन के साथ श्रीमद्भागवत कथा का मनमोहक रसास्वादन भक्तों को कराया।

प्रवक्ता ज्योतिष्पीठ ओंकारनाथ त्रिपाठी ने बताया कि 15 दिसम्बर तक प्रतिदिन प्रातः 7 से 12 बजे तक श्रीरामचरितमानस का नवान्हपरायण, अपरान्ह 2 से 5 बजे तक श्रीमद्भागवत कथा, सायं 7 से 9 बजे तक भगवान मैदानेश्वर बाबा का भव्य दिव्य रूद्राभिषेक होगा। आराधना महोत्व में दण्डी सन्यासी स्वामी विनोदानंद महाराज, दण्डी स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती, दण्डी सन्यासी ब्रह्मपुरी, ज्योतिष्पीठ संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य पं0 शिवार्चन उपाध्याय, आचार्य पं0 अभिषेक मिश्रा, आचार्य पं0 विपिनदेवानंद, आचार्य पं0 मनीष मिश्रा, सीताराम शर्मा, अनुराग, दीप कुमार पाण्डेय एवं महेन्द्र दुबे आदि विशेष रूप से सम्मिलित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र

   

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