नैनीताल, 10 सितंबर (हि.स.)। विश्वप्रसिद्ध नैनी झील में इस वर्ष लगभग दो दशक पुरानी काई की समस्या लौट आयी है। झील की सतह पर लगातार हरे रंग की एल्गी यानी काई की परतें स्पष्ट रूप से नजर आ रही हैं। यह काई झील की मछलियों के जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र के लिये गंभीर खतरे के रूप में देखी जा रही है।
वर्ष 2007-08 में इस समस्या के समाधान हेतु बड़े स्तर पर एयरेशन और बायो मैन्युपुलेशन तकनीक अपनायी गयी थी। एयरेशन के अंतर्गत झील में कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन प्रवाह की व्यवस्था की गयी थी तथा बायो मैन्युपुलेशन के अंतर्गत झील के लिये हानिकारक मानी जाने वाली गम्बूशिया और बिग हेड प्रजाति की मछलियों को लाखों की संख्या में बाहर निकाला गया। साथ ही हजारों गोल्डन कार्प, सिल्वर कार्प और झील की सेहत के लिये उपयोगी महाशीर प्रजाति की मछलियों को झील में डाला गया था। बावजूद इसके हरी काई का दोबारा नजर आना झील की बिगड़ती स्थिति की ओर संकेत कर रहा है।
विशेषज्ञों ने बताये समाधान के उपाय
पूर्ववर्ती झील विकास प्राधिकरण के सेवानिवृत्त प्रोजेक्ट इंजीनियर सीएम साह का कहना है कि बरसात के मौसम में झील में गंदगी का अत्यधिक मात्रा में आना काई की मुख्य वजह है। इससे झील में ऑक्सीजन का स्तर घट जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि झील में स्थापित एयरेशन मशीनों को 24 घंटे लगातार चलाया जाना चाहिये। वहीं जिला विकास प्राधिकरण के सचिव विजय नाथ शुक्ल ने कहा कि जल्द ही इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जाएगा।
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी



