कानपुर, 25 अक्टूबर (हि.स.)। शल्य चिकित्सा में एलोपैथ कुछ हद तक प्रभावित है, लेकिन रोगों में उनका प्रभाव दीर्घकालिक कम ही है। ऐसे में पारंपरिक चिकित्सा यानी आयुर्वेद की ओर अब लोगों का रुझान बढ़ रहा है। यही नहीं पारंपरिक चिकित्सा भी दीर्घकालिक गैर-संचारी रोगों की निरंतर वृद्धि से निपटने का एक तरीका है। यह बातें शुक्रवार को सीएसजेएम विश्वविद्यालय में आयुर्वेदाचार्य डा. नीलेश पाटिल ने कही।
छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) में सात दिवसीय संकाय संवर्धन कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। यह शिक्षा मंत्रालय के भारतीय ज्ञान प्रणाली विभाग, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और भारतीय ज्ञान प्रणाली अध्ययन केंद्र (आईआईटी कानपुर) के समन्वय से आयोजित है। शुक्रवार को चौथे दिन कार्यक्रम के प्रथम सत्र का शुभारंभ डॉ. वी.डी. चिन्मय फड़के, एमडी, पीएचडी (एससीएच) आयुर्वेद चिकित्सा संस्थान के व्याख्यान से हुआ। आयुर्वेद के कुशल ज्ञाता डॉ. चिन्मय ने चरक सहिंता के आयुर्वेदिक चिकित्सा की जानकारी दी।
उन्होंने कहा स्वास्थ्य ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सर्वोत्तम जड़ है बीमारियां उसकी भलाई और उसका जीवन छीन लेती हैं। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में डॉ वी.डी. विभव अनंत येओलेकर ने बताया कि आजकल बाजार में उपलब्ध कई प्रकार की हर्बल सिरप दवाओं को आयुर्देवदिक दवाओं का नाम देकर बेंचा जाता है जबकि वह आयुर्देवदिक नहीं है। कार्यक्रम के तीसरे सत्र में डा. नीलेश पाटिल ने आयुर्वेद के अनुप्रयोग और स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए भविष्य की संभावनाएं और रणनीतियां बताई।
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हिन्दुस्थान समाचार / अजय सिंह