ट्रंप के टैरिफ बम से भारत के कई सेक्टर का निकला दिवाला, कुछ की मनेगी दिवाली

नई दिल्ली, 03 अप्रैल (हि.स.)। अमेरिका की नई टैरिफ पॉलिसी से दुनिया के ज्यादातर देश प्रभावित होने वाले हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नई टैरिफ पॉलिसी का ऐलान करने के बाद से ही लगातार इस बात की समीक्षा की जा रही है कि भारत के किस सेक्टर पर इसका कितना असर पड़ेगा। इस नई टैरिफ पॉलिसी के कारण भारत में कई सेक्टर्स पर निगेटिव असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है, तो कई सेक्टर्स को फायदा होने की भी संभावना है।

अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी का ऐलान होने के बावजूद भारत के फार्मास्यूटिकल सेक्टर को सबसे अधिक राहत मिली है, क्योंकि अमेरिका ने इस सेक्टर को टैरिफ से बाहर रखा है। इसकी वजह से अमेरिका में अपनी दवाओं का निर्यात करने वाली डॉ. रेड्डीज लेबोरेट्रीज, अरबिंदो फार्मा और सन फार्मास्यूटिकल्स जैसी कंपनियों को काफी राहत मिली है। इन कंपनियों के कुल राजस्व में 33 से लेकर 50 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी अमेरिका को किए गए निर्यात की होती है। फार्मास्यूटिकल सेक्टर के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी में स्टील, कॉपर, सोना-चांदी समेत कुछ खास खनिजों को भी रेसिप्रोकल टैरिफ के दायरे से बाहर रखा गया है। ऐसा होने से इन सेक्टर्स से जुड़ी कंपनियों पर भी अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

अमेरिकी टैरिफ पॉलिसी में अपैरल इंडस्ट्री पर भी टैरिफ का बोझ डाला गया है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि टैरिफ के बोझ के बावजूद भारत को इस सेक्टर में फायदा मिल सकता है। अमेरिका के अपैरल मार्केट में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 6 प्रतिशत की है, जबकि चीन की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत और वियतनाम की हिस्सेदारी 19 प्रतिशत है। अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी में चीन पर कुल 54 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है, वहीं वियतनाम पर 46 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है, जबकि भारत पर टैरिफ का बोझ 26 प्रतिशत का है। ऐसे में भारत के अपैरल प्रोडक्ट्स की तुलना में चीन के उत्पादों पर 28 प्रतिशत और वियतनाम के उत्पादों पर 20 प्रतिशत अधिक टैरिफ का बोझ रहेगा। स्वाभाविक है कि टैरिफ के इस बड़े अंतर के कारण इंडियन अपैरल इंडस्ट्री के प्रोडक्ट अमेरिकी बाजार में नई व्यवस्था में भी चीन और वियतनाम के उत्पादों की तुलना में सस्ते पड़ेंगे। इसलिए इंडियन अपैरल इंडस्ट्री अंततः फायदे में रहेगी।

जहां तक रेसिप्रोकल टैरिफ से प्रभावित होने वाले सेक्टर की बात है, तो इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर का नाम लिया जा सकता है। भारत से इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्यात में अकेले अमेरिका के हिस्सेदारी करीब 32 प्रतिशत है। जाहिर है टैरिफ बढ़ाने का असर इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर से जुड़ी कंपनियों के रेवेन्यू पर पड़ सकता है। इसी तरह जेम्स एंड ज्वेलरी सेक्टर भी अमेरिका की टेरिस पॉलिसी से प्रभावित होगा। हालांकि सोना और चांदी को रेसिप्रोकल टैरिफ से बाहर रखा गया है, लेकिन जेम्स एंड ज्वेलरी पर अमेरिका 26 प्रतिशत टैरिफ लगाने वाला है। स्वाभाविक है कि इस टैरिफ के कारण जेम्स एंड ज्वेलरी सेक्टर की कंपनियां की कमाई पर काफी असर पड़ेगा। भारत से निर्यात होने वाले जेम्स एंड ज्वेलरी में अमेरिका के हिस्सेदारी 57 प्रतिशत है। यानी भारत से कट एंड पॉलिश्ड और तैयार गहने डायमंड के कुल निर्यात में सबसे बड़ी हिस्सेदारी अमेरिका की है। ऐसे में 26 प्रतिशत टैरिफ लगने पर भारतीय उत्पाद काफी महंगे हो जाएंगे, जिससे अमेरिकी बाजार में उनकी कॉम्पिटेटिव कैपेसिटी पर असर पड़ेगा।

अमेरिका की नई टैरिफ पॉलिसी में सामानों यानी गुड्स को रेसिप्रोकल टैरिफ के दायरे में रखा गया है, लेकिन सर्विसेज को टैरिफ के दायरे से मुक्त रखा गया है। इसलिए आईटी सर्विसेज के एक्सपोर्ट पर नई टैरिफ पॉलिसी का कोई असर नहीं होगा। इसलिए टैरिफ पॉलिसी के लिहाज से आईटी सेक्टर को परेशान नहीं होना चाहिए। हालांकि माना जा रहा है की रेसिप्रोकल टैरिफ की वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है, जिसके कारण भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले आईटी सर्विसेज पर असर पड़ सकता है। इसी आशंका की वजह से आज घरेलू शेयर बाजार की टॉप 5 लूजर्स कंपनियों में 4 कंपनियां आईटी सेक्टर की ही थीं। इन कंपनियों में टीसीएस, टेक महिंद्रा, एचसीएल टेक्नोलॉजी और इंफोसिस के नाम शामिल हैं। इसके अलावा विप्रो और ट्रेंट लिमिटेड के शेयर भी दबाव में कारोबार करने के बाद गिरावट के साथ बंद हुए।

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हिन्दुस्थान समाचार / योगिता पाठक

   

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