उत्तरकाशी की महिलाएं बना रही पारंपरिक मिठाई अरसा, स्वरोजगार से जुड़कर मजबूत कर रही आर्थिकी

देहरादून, 9 फरवरी (हि.स.)। उत्तराखंड की पारंपरिक मिठाई अरसा न केवल रीति-रिवाजों का हिस्सा है, बल्कि अब यह स्वरोजगार का भी जरिया बन रही है। विवाह, पूजा और अन्य शुभ अवसरों पर बनाए जाने वाले अरसे को उत्तरकाशी जिले की महिलाओं ने अपनी आजीविका का साधन बना लिया है। इस पहल में स्थानीय व्यापारी अजय प्रकाश बड़ोला उनका सहयोग कर रहे हैं।

उत्तरकाशी के सीमांत क्षेत्रों में अजय बड़ोला ने तीन साल पहले स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को अरसा बनाने के लिए प्रेरित किया और उनकी बिक्री का जिम्मा लिया। इसके बाद महिलाएं घर पर ही अरसे तैयार कर उन्हें अजय प्रकाश तक पहुंचाने लगीं। अजय प्रकाश ने अपनी दुकान में अरसा काउंटर स्थापित किया, जहां से हर दिन इसकी बिक्री होती है।

कालिका महिला स्वयं सहायता समूह और गायत्री महिला स्वयं सहायता समूह अब तक फरवरी महीने में 200 किलो तक अरसे बेच चुकी हैं। यह मिठाई ₹150 से ₹200 प्रति किलो के दाम पर बिक रही है, जिससे महिलाओं को आर्थिक लाभ हो रहा है। समूह की अर्चना नेगी और गीता बहन जैसी महिलाएं घर के कामों के साथ-साथ स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।

अर्चना बताती है कि गुड़ और गेहूं के आटे से अरसे तैयार किए जाते हैं। वे कहती हैं कि वे घर में ही अरसे बनाने का कार्य कर करती है और मार्केट अजय प्रकाश बड़ोला उपलब्ध करवा रहे हैं।

अजय प्रकाश बड़ोला बताते हैं कि महिलाएं स्वरोजगार के जरिए अपनी आर्थिकी को मजबूत कर सकती हैं। इसके लिए सरकार को चाहिए कि मार्केट उपलब्ध कराए। अरसे के साथ-साथ चौलाई के लड्डू, कोदे के आटे की बिस्कुट आदि का भी महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। वे बताते हैं कि देहरादून, हरिद्वार, जयपुर तक अरसे भेजे जा रहे हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pokhriyal

   

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