सब के बलकवा के दिहा, छठी मईया ममता-दुलार...

- पीतलनगरी में छठ पूजा महापर्व के चौथे व अंतिम दिन श्रद्धा और आस्था के साथ उगते हुए सूर्य देवता को अर्घ्य दिया गया

मुरादाबाद, 08 नवम्बर (हि.स.)। बीते तीन दिन से लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा में डूबी पीतलनगरी मुरादाबाद में शुक्रवार को महापर्व के चौथे व अन्तिम दिन महिलाओं के द्वारा श्रद्धा और आस्था के साथ उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया और 36 घंटे निर्जल व्रत पूर्ण हुआ। शहर में रह रही पूर्वांचल और बिहार की 10 हजार से अधिक उपवासधारी महिलाओं ने रामगंगा नदी के घाटों पर, गागन नदी पर इसके अलावा पार्कों, घरों की छतों, मंदिर परिसरों में बनाए गए अस्थाई तालाबों में छठ पूजा की। इस दौरान प्रसिद्ध लोकगीत पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया व्रत तोहार, करिहा क्षमा छठी मईया, भूल-चूक गलती हमार, सब के बलकवा के दिहा, छठी मईया ममता-दुलार, पिया के सनईहा बनईहा, मईया दिहा सुख-सार... गूंजता रहा।

शुक्रवार तड़के से ही छठ पूजा आयोजन स्थल व घाटों पर श्रद्धालु परिवार के साथ टोकरे में फल, गन्ने, पूजा सामग्री आदि लेकर पहुंचीं। सूर्योदय के समय से कुछ पहले ही व्रतधारियों ने जल में खड़े होकर छठ मैया की आराधना शुरू कर दी। उगते सूर्य देव की पहली किरण के साथ ही छठ मैया का जयघोष होने लगा व अर्घ्य देना प्रारंभ हो गया। भक्तजन काफी देर तक घाटों पर भजन कीर्तन करते रहे। इस दौरान कपूर कंपनी पुल, लाइनपार केजीके कालेज के पास, हरथला सहित लाइनपार, हिमगिरि, रामगंगा विहार, दीन दयाल नगर, पीएसी की बटालियनों में, बुद्धि विहार, लाइनपार, बंगलागांव, डबल फाटक, कटघर, एमडीए व आवास विकास की कालोनियों और अनेकों मोहल्लों व अपार्टमेंटों में आदि में लोगों अपने घरों की छतों, पार्कों आदि में अस्थाई तालाब बनाकर उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया।

इसके अलावा जिलें में 10 से अधिक स्थानों पर छठ पूजा के सामूहिक कार्यक्रम सम्पन्न हो रहे थे। रामंगगा नदी घाट रामगंगा विहार, रामगंगा नदी लालबाग, गांगन नदी, चटटा पुल पर छठ पूजा के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी। जहां पर गुरुवार शाम को डूबते हुए सूर्य देवता को अर्घ्य दिया गया। इसके आलावा घरों की छतों पर, पार्कों में अस्थाई तलाब बनाकर आज उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया गया।

महिलाओं ने नाक से मांग तक तीन बार लगाया सिंदूर

छठ व्रतधारी महिलाओं ने पति की दीर्घायु और बच्चों की कुशलता के लिए नाक से मांग तक सिंदूर लगाया। आचार्य कामेश मिश्रा ने बताया यह सिंदूर तीन बार लगाया जाता है क्योंकि स्त्री की तीन अवस्थाएं होती हैं। पहले में कन्या दूसरी में पत्नी और तीसरी मां होती है। तीनों में ही कन्या के रूप में पिता, पत्नी के रूप में पति और मां के रूप में बेटे की दीर्घायु की कामना करती है तीनों स्वरूपों को याद को सिंदूर तीन बार लगाया जाता है।

छठ पर्व के चार दिनों में व्रती को सात्विक व संयमित जीवन जीना पड़ता है

मुरादाबाद में बीते 15 वर्षों से रह रही बिहार के मुंगेर निवासी शालिनी सिंह ने बताया कि इस बार उन्होंने सोलहवां छठ पर्व मनाया है। उन्होंने कहा कि छठ गहरी आस्था वाला एक कठिन पर्व है, जिसमें सारे अहंकार त्यागकर भक्त खुद को भगवान को समर्पित कर देते हैं।छठ पर्व के चार दिनों में व्रती को सात्विक व संयमित जीवन जीना पड़ता है। शालिनी सिंह ने कहा कि छठ एक सामूहिक तौर पर मनाया जाने वाला पर्व है जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता है। इस पर्व में 36 घंटे का निर्जला व्रत रखना होता है, इसलिए इसे करना हर किसी के वश की बात नहीं होती। वो महिला या पुरुष जिसमें चार दिनों तक सात्विक और समर्पित रहने का भाव होता है, वो ही इस पर्व को मनाते हैं‌।

छठ महापर्व भगवान सूर्य को समर्पित एक सामूहिक पर्व

मुरादाबाद में बीते 18 वर्षों से रह रही बिहार के पटना निवासी कंचन मिश्रा ने बताया कि छठ महापर्व भगवान सूर्य को समर्पित एक सामूहिक पर्व है। छठ पूजा के नियम और और चरण बेहद कठिन होते हैं लेकिन इस पर्व की सरलता ये है कि इसमें किसी भी धार्मिक रीति-रिवाज या पुजारी का स्थान नहीं होता। इसमें किसी महंगे या खरीदे हुए या फिर बनी-बनाई चीजों या सामानों का प्रयोग नहीं होता। बर्तन तक मिट्टी के या बांस के इस्तेमाल होते हैं। इसमें केवल प्राकृतिक चीजों और घर के बने हुए व्यंजनों से पूजा होती है। इसलिए इस पर्व को कोई भी जाति या वर्ग का इंसान कर सकता है।

हिन्दुस्थान समाचार / निमित कुमार जयसवाल

   

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